सिरमौर – नरेश कुमार राधे
“संघर्ष जितना कठिन होगा जीत उतनी शानदार होगी” पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाली बीपीएल परिवार की एक बेटी पल्लवी भी संघर्ष की ऐसी ही राह पर अग्रसर है। 10 साल की इकलौती बेटी अपनी जिम्मेदारियों का इस कदर निर्वहन कर रही है कि हर कोई बेटी के जज्बे को सलाम करेगा। आठवें नवरात्र को जन्मी बेटी परिवार के लिए साक्षात लक्ष्मी बनकर आई है।
पांवटा साहिब-देहरादून हाईवे पर सूरजपुर में शहीद स्मारक के समीप सुरेंद्र कुमार नाम का एक व्यक्ति “कश्यप टी स्टाल” के नाम से चाय की दुकान चलाकर परिवार का गुजर बसर करता है। पत्नी उमा देवी जन्म से ही दिव्यांग है और इधर-उधर चलने में सक्षम नहीं है। उमा देवी को एक जगह से दूसरी जगह उठा कर रखना पड़ता है। दंपत्ति के पास इकलौती संतान पल्लवी है, जिसने 10 साल की उम्र से ही परिवार की जिम्मेदारियां संभालनी शुरू कर दी है।
संतोषगढ़ के सरकारी स्कूल में पांचवी कक्षा में पढ़ने वाली बेटी तीन बजे स्कूल में छुट्टी होने के बाद सीधा माता-पिता की मदद करने चाय की दुकान पर पहुंच जाती है। पांवटा साहिब में इस समय पारा लगभग 40 डिग्री है। बेटी जब स्कूल की वर्दी पहने ग्राहकों को चाय बनाकर परोसती है तो हर किसी का ध्यान चाय से ज्यादा बेटी के संघर्षों पर केंद्रित हो जाता है, जो हर किसी के लिए प्रेरणादायक है।
पिता सुरेंद्र कुमार के बोल
सुरेंद्र कुमार ने बताया कि वह हरियाणा के अंबाला जिला के शहजादपुर के रहने वाले है। 2014 में उनकी शादी हिमाचल प्रदेश के शिलाई विधानसभा क्षेत्र के पाब मानल गांव की रहने वाली उमा देवी से हुई, जो बचपन से ही दिव्यांग है। उमा के पांव ठीक नहीं है, जिस कारण वह चलने-फिरने में अक्षम है।
यहां तक की उन्हें शौच आदि के लिए भी उठा कर ले जाना पड़ता है। सुरेंद्र कुमार खुद भी गरीब परिवार से संबंध रखते हैं। उमा देवी के परिजनों की पांवटा साहिब के समीप संतोषगढ़ में जमीन थी, जो उन्होंने शादी के बाद उमा और सुरेंद्र को रहने के लिए दे दी।
सुरेंद्र कुमार ने बताया कि शादी होने के बाद उन्होंने इन विकट परिस्थितियों में कभी सोचा भी नहीं था कि उनके पास कोई संतान भी होगी। छोटा सा घर है, जिसके ऊपर टीन की छत है। तूफान में हर बार उड़ने का खतरा बना रहता है। लेकिन कुदरत ने दम्पति की देखभाल के लिए एक होनहार बेटी को भेज दिया और दोनों के पास 2015 में आठवें नवरात्र के दिन बेटी पैदा हुई। बेटी के जन्म के बाद दोनों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। बेटी घर में लक्ष्मी बनकर आई। जैसे-जैसे बेटी बड़ी होती गई माता-पिता का सहारा बनने लगी।
सुरेंद्र ने बताया कि बेटी हमेशा स्कूल से आते ही सीधा चाय की दुकान पर पहुंच जाती है और ग्राहकों को चाय देने में जुट जाती है। सुरेंद्र ने बताया कि दिन भर में यही वह पल होते हैं, जब उन्हें आराम करने का मौका मिल जाता है और साथ ही बेटी को देखकर न जाने दिन में कितनी बात यह ख्याल खुद ब खुद आता है कि कुदरत ने मेरे घर में साक्षात लक्ष्मी को भेज दिया है।
मां उमा देवी के बोल
वहीं, पल्लवी की मां उमा देवी ने बताया कि “बेटी को पाकर बेहद खुश है। मैंने तो यह सोच लिया था कि कभी शादी ही नहीं होगी। कौन ले जाएगा, चल फिर तो नहीं सकती। लेकिन पति सुरेंद्र कुमार ने यह सब नहीं देखा और शादी हो गई।” उन्होंने बताया कि “बेटी चाय की दुकान पर काम करने के साथ-साथ मेरी सेवा में भी कोई कमी नहीं छोड़ती।
ऐसी बेटी पाकर हम तो धन्य है।” पल्लवी अपनी पढ़ाई और परिवार की जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही है। पल्लवी का यह संघर्ष और समर्पण हमें सिखाता है कि असली शक्ति धन-दौलत में नहीं, बल्कि इंसान के अंदर के जज़्बे में होती है।