शिमला – नितिश पठानियां
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले के बाद मुख्य संसदीय सचिवों के सचिवालय में कार्यालय खाली कराने के आदेश जारी कर दिए गए हैं और कुछ दफ्तर खाली भी कर दिए गए हैं। सीपीएस के साथ लगाया गया स्टाफ भी वापस बुला दिया गया है। गाड़ियां इनसे वापस ले ली गई हैं।
प्रदेश सरकार ने बुधवार शाम को ही यह आदेश जारी किए। यहीं नहीं इन सीपीएस को सरकार की ओर से दी गई सभी सुख सुविधाएं भी हट जाएंगी। सरकारी कोठियां भी खाली करनी होंगी। बुधवार को हाईकोर्ट के फैसले के बाद सचिवालय में सीपीएस के कमरों में सन्नाटा पसरा रहा। कई भी सीपीएस सचिवालय में नहीं देखे गए। सात मंत्रियों के साथ ही इन सीपीएस ने गोपनीयता की शपथ ली थी।
किस सीपीएस को काैन सा विभाग
सक्खू सरकार में मुख्य संसदीय सचिव मोहन लाल ब्राक्टा को विधि विभाग, संसदीय कार्य विभाग और बागवानी विभाग, रामकुमार को नगर नियोजन विभाग, उद्योग विभाग और राजस्व, आशीष बुटेल को शहरी विकास विभाग के साथ शिक्षा विभाग में मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री के साथ अटैच किया गया।
वहीं, मुख्य संसदीय सचिव किशोरी लाल को पशुपालन विभाग, ग्रामीण विकास के साथ पंचायती राज विभाग की जिम्मेवारी सौंपी गई। संजय अवस्थी को स्वास्थ्य जनसंपर्क और लोक निर्माण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई। मुख्य संसदीय सचिव सुंदर सिंह ठाकुर को ऊर्जा, वन, परिवहन और पर्यटन विभाग विभाग का जिम्मा सौंपा गया। यह छह मुख्य संसदीय सचिव अलग-अलग विभागों के मंत्रियों की काम में मदद करने का जिम्मा दिया गया।
स्टाफ की नियुक्ति के लिए अलग से जारी होंगे निर्देश
हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रदेश सरकार ने मुख्य संसदीय सचिव से स्टाफ हटाने के निर्देश जारी कर दिए हैं। वरिष्ठ निजी सचिव भूरी सिंह राणा, तहमीना बेगम और विशेष निजी सचिव सत्येंद्र कुमार सहित अन्य स्टाफ को वापस बुलाया गया है। अब कार्मिक विभाग की ओर से इनकी अलग से नियुक्ति के आदेश जारी किए जाएंगे।
राज्यपाल से मंजूरी के बाद यह फैसला लिया गया है। इसके साथ ही सरकार ने सीपीएस के स्टाफ के कर्मचारी यानकी देवी, सुनीता ठाकुर, उत्तम चंद, चेतन, संदीप, चंद्र, धर्मपाल, रविंद्र, नेत्र सिंह, मोहिंद्र, विनोद, टिक्कम राम, नीरज और भूपिंद्र को वापस बुलाने के आदेश जारी किए हैं।
प्रदेश में अब ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के दायरे में आएंगी सीपीएस की नियुक्तियां : हाईकोर्ट
हिमाचल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि प्रदेश में सीपीएस/पीएस की नियुक्ति का कानून फैसला आने तक लागू था। अयोग्यता अधिनियम 1971 के तहत सीपीएस/ पीएस की नियुक्तियों को संरक्षण दिया गया था, लेकिन इस फैसले के बाद मुख्य संसदीय सचिवों व संसदीय सचिवों की नियुक्ति को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट माना जाएगा। एेसे में यदि अब सीपीएस नियुक्त होते हैं, तो उनकी विधायकी भी जाएगी।