नेशनल यूथ डेव्लपमेंट सेंटर” लोक संस्कृति को सँजोने का कर रहा प्रयास)
देहरा, शीतल शर्मा
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तत्वाबधान में एवं हिमाचल प्रदेश भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग के निर्देशन में “नेशनल यूथ डेव्लपमेंट सेंटर” द्वारा आलोप हो रही है “मुसाधा गायन -लोक गाथा गायन” लोक संस्कृति प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है।
संस्था के निर्देशक संजीव जख्मी ने जानकारी देते हुए बताया कि लोकगाथा का अभिप्राय है जनसाधारण में परंपरा से चले आ रहे प्रबंधात्मक गीत। प्राचीन काल में लेखन की सुविधा न होने के कारण श्रुतियों द्वारा अपने नायकों, देवताओं और सम्राटों की प्रशस्तियां गाने की परंपरा चली। रामायण, महाभारत काव्यों के नायकों की गाथाओं से समस्त भारत के शिष्ट तथा लोक साहित्य में देवगाथाएं उपलब्ध होती हैं।
उन्होने कहा कि लोक कलाएं हमारी सामाजिक संस्कृति की धरोहर हैं। हमें अपनी संस्कृति को नहीं भूलना चाहिये I हम अपनी परंपरा को भूल रहे हैं। अगर हम ही इनको संजोकर नहीं रखेंगे तो कोई बाहर से थोड़ी आएगा। हम लोगों को अपनी परंपराओं को सहेज कर रखना है, अन्यथा यह इतिहास बन कर रह जाएंगी।
मुसाधा गायन विशेषज्ञ महिंदरों राम ने बताया कि “मुसाधा गायन“ में लोक गाथाएं अनेकता के रंग में रंगी हुई हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप में आज भी गाई और सुनी जाती हैं I मुसाधा गायन में धार्मिक प्रसंगों वाली कई गाथाएं गाई जाती हैं, जैसे रमीण (रामायण), पंडवीण (महाभारत), शवीण (शिव पुराण) आदि। ऐतिहासिक आख्यान को गाथाकार ने अपनी बोली में निबद्ध किया है।
उन्होने बताया कि मुसाधा गायन में मात्र दो कलाकार होते हैं। पुरुष कलाकार को ‘घुराई’ और स्त्री कलाकार को ‘घुरैण’ कहते हैं। मुसाधा लोक कलाकार शायद विश्व में पहला लोक कलाकार है जो एक साथ दो वाद्य यंत्रों को बजाते हुए गाता है।
एक हाथ में वाद्ययंत्र खंजरी से ताल बजाता है और दूसरे हाथ से गले में लटका वाद्य यंत्र रुबा ना (तार वाद्य) से संगीत देते हुए गाता है। घुरैण (स्त्री कलाकार) हाथों में कंसी बजाते हुए गाने में साथ देती है।