लेखक बीजू हिमदल कुल्लू
परेशान तो होता हूँ ये जानकार कि आज भी हमारे भारत देश के दिव्यांग साथी अपने- अपने घरों में कैद हैं। ये बात बहुत सोचने की है कि हमारे देश को आजाद होकर आज 75 वर्ष पुरे हो गये हैं, लेकिन आज भी हमारे दिव्यांग साथी कमरों में ही बंद क्यों रहते हैं ???
इस विषय को जब मैंने व्यक्तिगत रूप से साम्फिया फाउंडेशन के माध्यम से विभिन्न तरह के दिव्यांगता जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से जाना तो यह पाया कि दिव्यांग जनों को घर में कैद नहीं किया जाता, बल्कि वो इसलिए कैद हैं क्योंकि उनके लिए बाहर समाज में सुगम्यता (एक्सेसिबिलिटी) ही नहीं है।
अर्थात उन्हें ऐसा वातावरण ही नहीं मिला है जिससे कि वह बाहर निकल कर सामने आए और अपना जीवन बिना रुकावट के जी सके। फिर सोचा कि दिव्यांगों को भारतीय संविधान ने जो अधिकार दिए हैं जरा उनको खंगाल लूँ-उनको जान लूँ।
फिर पता चला कि भारतीय संविधान में हमारे दिव्यांग साथियों के लिए उपयुक्त अधिकारों का प्रावधान किया है, लेकिन विडंबना है कि समाज में उन अधिकारों की पालना ना तो विभाग सही से कर पाया है और ना ही सरकार।
मैंने व्यक्तिगत रूप से बहुत से दिव्यांग साथियों के साथ बात की है और उनकी समस्याओं को जानने की कोशिश की है जिससे मुझे पता चला कि दिव्यांग जन भी बहार निकल कर आपम नागरिकों की तरह जीना चाहते हैं, पार्क में घूमना चाहते हैं, दुकानों में खरीददारी करना चाहते हैं, मॉल रोड में घूमना चाहते हैं, मैदानों में टहलना चाहते हैं लेकिन ये सभी व्यवस्थाएं उनके लिए पर्याप्त रूप में उपलब्ध नहीं।
ये सब जानकर मुझे ये अनुभूति हुई है कि दिव्यांगों को दया और दुआ की जरूरत नहीं है। इन्हें हमारे सहयोग की जरूरत है। जिस तरह से भारतीय संविधान ने आम नागरिकों के लिए बहुत से अधिकारों का प्रावधान किया है। ठीक उसी तरह दिव्यांग जनों के लिए भी बहुत से अधिकार दिए गए हैं लेकिन हम सभी को इनके अधिकारों की प्राप्ति के लिए लड़ना होगा।
आज ऐसा समय आ गया है कि यदि इनके हक के लिए हम नहीं लड़ेंगे तो धीरे-धीरे दिव्यांगता और ज्यादा खतरे में पड़ जाएगी। वह दिन भी दूर नहीं जिस दिन दिव्यांग साथी जब उस उम्र में पहुंचेंगे जहां उनका सोचना और समझना शुरू हो जाता है तो वह समाज से बहुत हताश होंगे इसलिए मेरा निवेदन है कि “आओ हम सब मिलकर दिव्यांग जनों के लिए एक समावेशी दुनिया बना सकें”।