नाहन मेडिकल कॉलेज की कथित ‘लापरवाही’ से नवजात की मौत, फिर लगा काला धब्बा

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सिरमौर – नरेश कुमार राधे

हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य जगत को झकझोर देने वाली एक और दर्दनाक घटना सामने आई है। सिरमौर का प्रतिष्ठित डॉ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज एक बार फिर सवालों के कटघरे में खड़ा है, जहाँ कथित तौर पर डॉक्टरों और स्टाफ की घोर लापरवाही ने एक नवजात की सांसें छीन लीं।

यह भयावह कहानी, 25 अक्टूबर 2025 को तब शुरू हुई, जब नाहन विकास खंड के चाकली गांव की जागृति ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया। मां की गोद में पूरी रात स्वस्थ रहा, फीड लेता रहा; लेकिन अगली सुबह एक मामूली ‘बुखार’ का बहाना बनाकर, दो किलो 800 ग्राम के उस मासूम को सीधे मौत के मुहाने यानी आईसीयू में धकेल दिया गया।

पीड़ित परिवार ने नवजात के जन्म के तुरंत बाद ली गई उन तस्वीरों को सहेज कर रखा है। इन तस्वीरों को देखकर भी नहीं लगता कि नवजात शिशु स्वस्थ नहीं था। पीड़ित परिवार ने सीधे तौर पर अस्पताल प्रबंधन पर लीपापोती और कोताही का आरोप लगाया है।

सबसे बड़ा सवाल तब खड़ा हुआ,जब मेडिकल कॉलेज जैसी बड़ी संस्था ने नवजात को पीजीआई भेजने के बजाय, बेहद नाजुक हालत में, एक साधारण ऑक्सीजन पंप के सहारे 27 अक्टूबर को हरियाणा के जिला अस्पताल पंचकूला में रैफर कर दिया। 28 अक्टूबर की देर दोपहर शिशु की मौत हो गई। मासूम के पार्थिव शरीर को वापस लेकर गांव में ही दफनाया गया।

सवाल पैदा होता है कि क्या कोई मेडिकल कॉलेज किसी मरीज को जिला अस्पताल में रैफर कर सकता है? प्रबंधन का तर्क था कि वेंटिलेटर नहीं मिलेगा, लेकिन परिवार का शक गहराता जा रहा है कि आईसीयू में बच्चे की फूड पाइप लगाने या ऑक्सीजन सप्लाई में जानबूझकर या लापरवाहीपूर्वक भारी चूक की गई।

पिता हरीश शर्मा ने मेडिकल अधीक्षक को सौंपे शिकायत पत्र में सीधे सात तीखे सवाल दागे हैं, जिनका जवाब देना कॉलेज के लिए आसान नहीं होगा। परिवार ने स्पष्ट आशंका जताई है कि या तो नवजात को फूड पाइप गलत तरीके से डाली गई या आईसीयू में उसे चेक करने में भयानक लापरवाही बरती गई।

बार-बार कहने पर भी ड्यूटी नर्स ने ऑक्सीजन और पल्स रेट की मशीन की तार को जोड़ने से मना कर दिया, यह कहते हुए कि ‘इसकी जरूरत नहीं है!’ क्या यह जवाब एक मासूम की जान से बड़ा था? यह पहली बार नहीं है जब नाहन मेडिकल कॉलेज नवजात की मौत को लेकर सुर्खियों में है।

बार-बार विवाद होने के बावजूद, सबसे संवेदनशील जगह, शिशु वार्ड (ICU) में सीसीटीवी कैमरे क्यों नहीं लगाए जाते? क्या प्रबंधन को डर है कि कैमरे लगने से हर बार ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ हो जाएगा? अस्पताल परिसर में सुरक्षा के इंतजाम हैं, लेकिन अस्पताल संवेदनशील वार्डों में कैमरों की गैर-मौजूदगी बताती है कि सच्चाई पर पर्दा डालना शायद प्राथमिकता है।

मेडिकल अधीक्षक ने इस गंभीर मामले पर फोन उठाना भी मुनासिब नहीं समझा। अब देखना यह है कि क्या यह घटना भी पिछली बार की तरह ‘फाइल’ बनकर रह जाएगी, या इस बार निष्पक्ष जांच के बाद कोई कठोर कार्रवाई कर सख्त संदेश दिया जाएगा।

कॉलेज की मेडिकल अधीक्षक के साथ-साथ संयुक्त निदेशक को भी फोन किए, लेकिन मजाल है कि किसी ने फोन उठाया हो। मेडिकल कॉलेज जैसे संस्थान के अधिकारियों की संवेदनशीलता की पोल भी खुल गई। ये बात भी समझ से परे है कि ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति क्यों की जाती है,यहां तेजतर्रार अधिकारी ही होने चाहिए।
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