टांडा में नहीं हो रहे थाइराइड टेस्ट, निजी लैब्स में टेस्ट के लग रहे 400 से 500, मरीज परेशान

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मशीन के खराब होने से छह जिलों के रोगियों को झेलनी पड़ रही दिक्कतें

काँगड़ा – राजीव जस्वाल

डाक्टर राजेंद्र प्रसाद राजकीय आयुर्विज्ञान चिकित्सा महाविद्यालय टांडा अस्पताल में थायराइड की मशीन पिछले एक साल से खराब पड़ी हुई है। थायराइड टेस्ट मशीन के खराब होने के कारण मरीजों के थायराइड के टेस्ट नहीं हो पा रहे है, जिसके चलते दूरदराज से आए मरीजों को भारी परेशानियों को झेलने को मजबूर होना पड़ रहा है।

टांडा सरकारी अस्पताल में टेस्टों की मुफ्त की सुविधा होने के बावजूद थायराइड के टेस्ट मुफ्त में भी नहीं हो पा रहे हैं। मरीजों को प्राइवेट लैब्स में नकद पैसे देकर टेस्ट करवाने पड़ रहे हैं। बड़ी विडंबना है लगभग पिछले एक से थायराइड की मशीन को ठीक नहीं करवाया जा सका है और न ही नई मशीन लगाई जा सकी है।

विदित है की प्रदेश के दुसरे बड़े टांडा अस्पताल में छ: जिलों चंबाए मंडी एऊना एहमीरपुरए कुल्लू और 15 लाख की आबादी वाले सबसे बड़े जि़ला कांगडा के करीब प्रतिदिन 2 से 3 हजार के करीब मरीज उपचार के लिए यहां पहुंचते हैं। ऐसे में करीब 2 हजार से अधिक मरीजों को खून से सम्बन्धित या अन्य टैस्ट करवाने के पड़ते हैं अब ऐसे में मशीनों के खराब होने के चलते एक तरफ तो मरीजों का समय खराब हो रहा है।

वहीं दूसरी ओर मुफ्त की सुविधा होने के बाबजूद भारी भरकम पैसे देकर प्राइवेट लैब्स में टैस्ट करवाने पड़ रहे हैं।थाईराइड की मशीन के खराब होने के कारण मरीजों को थाईराइड के टैस्ट बाहर प्राइवेट लैब्स में पैसे देकर करवाने पड़ रहे हैं।

गौरतलब बडी बिडंबना है की टांडा अस्पताल में प्रदेश की 30 लाख से अधिक की आबादी उपचार के लिए पहुंचती है ऐसे में यहां सभी मशीनों के विकल्प मौजूद नहीं है अगर कोइ मशीन खराब हो जाए तो जब तक वह मशीन ठीक नहीं हो जाती या नई मशीन उपल्ब्ध नहीं होती है तब तक मरीजों को परेशानियां झेलनी पड़ती है।

टांडा अस्पताल में 2007 व 2008 से चल रही कई मशीनें जिनमें एक्सरे भी सम्मिलित है की समयावधि समाप्त हो चुकी है अब ऐसी मशीनों को बदलना अति आवश्यक है क्योंकि मशीनों के पुराने होने की वजह से एक टैस्ट के लिए ही बहुत समय लग रहा है।

प्रदेश के दूसरे बड़े अस्पताल में बार बार मशीनों का खराब होना मरीजों के लिए आफत बनता जा रहा है। 2007 से शुरू हुई ओपीडी के बाद से पुरानी मशीनों से ही व्यवस्था को चलाया जा रहा है नई मशीनों की घोषणाएं तो अक्सर कर दी जाती हैं परंतु धरातल में मशीनों की तस्वीर कुछ और ही बयान कर रही है। 2007 के बाद मरीजों की संख्या करीब दुगनी से तिगुनी हो चुकी है परंतु मशीनों की संख्या बढऩे की बजाए घटती जा रही है।

निजी लैब्स में टेस्ट के लग रहे 400 से 500

थायराइड टेस्ट करवाने के लिए मरीजों को अंत में थायराइड टेस्टों के लिए मरीजों को प्राइवेट लैब्स का रुख कारण पड़ रहा है। प्राइवेट लैब्स में थायराइड का टेस्ट 400 से 500 रुपए में होता हैं, वहीं फेरिटिन का टेस्ट 1400 रुपए में किया जाता है।

थायराइड के अंतर्गत भी कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं, कई मरीजों के सभी तरह के टेस्ट करने के करीब दो से पांच हजार तक खर्चा आ रहा है। सरकारी अस्पतालों में फ्री की सुविधा होने के बाबजूद मरीजों को नकद पैसे खर्च कर टेस्ट करवाने को मजबूर होना पड़ रहा है।

हालांकि थायराइड की मशीन की कीमत इतनी अधिक भी नहीं हैं कि इसे खरीदा न जा सके। एक से दो लाख की लागत वाली थायराइड की मशीन को आसानी से खरीदा भी जा सकता है, ताकि दूर दराज के मरीजों को असुविधा ना हो।

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