काम की बात: राजनीतिक पार्टियों को कैसे मिले चुनाव चिह्न, जानें इससे जुड़ा रोचक इतिहास

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क्या आप जानते हैं कि आजाद भारत में जब पहली बार चुनाव हुआ था, उस समय पार्टियों को चुनाव चिह्न कैसे दिए गए थे। क्या है चुनाव चिह्न से जुड़ा इतिहास।

हिमखबर डेस्क

लोकसभा चुनाव के लिए कई राजनीतिक पार्टियां मैदान में हैं। तीन चरणों का मतदान हो चुका है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आजाद भारत में जब पहली बार चुनाव हुआ था, उस समय पार्टियों को चुनाव चिह्न कैसे दिए गए थे। क्या है चुनाव चिह्न से जुड़ा इतिहास।

कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ यानी पंजा है, लेकिन 1951 में हुए देश के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का चुनाव चिह्न कुछ और ही था। एक समय पर तो कांग्रेस के पास अपना चुनाव चिह्न हाथी या साइकिल में बदलने का विकल्प भी था। कमल से पहले भाजपा का सिंबल क्या हुआ करता था, यह भी आपको बताएंगे।

दो बैलों की जोड़ी से पंजे तक का सफर

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल है। इसकी स्थापना 1885 में हुई थी। जब 1951-1952 में देश का पहला आम चुनाव हुआ था, उस वक्त जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस दो बैलों की जोड़ी के चुनाव चिह्न पर वोट मांगा करती थी।

यह निशान आम लोगों और किसानों के बीच तालमेल बनाने में सफल हुआ था। करीब दो दशक तक कांग्रेस पार्टी इसी चिह्न के साथ चुनावी मैदान में उतरती थी, लेकिन 1970-71 में कांग्रेस में विभाजन हो गया था। इसलिए दो बैलों की जोड़ी वाला चिह्न चुनाव आयोग ने जब्त कर लिया था।

उस वक्त कामराज के नेतृत्व वाली पुरानी कांग्रेस को तिरंगे में चरखा देकर और इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली नई कांग्रेस पार्टी को गाय और बछड़े का चिह्न देकर विवाद का निपटारा हुआ था। एक दशक के अंदर ही कांग्रेस पार्टी में चिह्न पर फिर विवाद छिड़ गया था।

आपातकाल खत्म

1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद इंदिरा गांधी के दौर में कांग्रेस की लोकप्रियता में काफी गिरावट आई थी। इसी दौर में चुनाव आयोग ने गाय और बछड़े के चिह्न को भी जब्त कर लिया था। उस वक्त कांग्रेस एक मुश्किल दौर से गुजर रही थी। कहा जाता है कि उस वक्त इंदिरा गांधी तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखरेन्द्र सरस्वती का आशीर्वाद लेने पहुंची।

उस समय इंदिरा गांधी की बातें सुनने के बाद शंकराचार्य मौन हो गए थे। वहीं कुछ देर बाद उन्होंने अपना दाहिना हाथ उठाकर आर्शीवाद दिया था। कहा जाता है कि कांग्रेस के वर्तमान चुनाव चिह्न की कहानी यहीं से शुरू हुई थी।

चुनाव चिह्न में विकल्प

1979 में कांग्रेस के एक और विभाजन के बाद इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आई) की स्थापना की थी। उन्होंने बूटा सिंह को चुनाव चिह्न फाइनल कराने के लिए चुनाव आयोग के कार्यालय भेजा था। वहां चुनाव आयोग ने कांग्रेस (आई) के चुनाव चिह्न के रूप में हाथी, साइकिल और खुली हथेली का विकल्प दिया था।

इंदिरा गांधी ने पार्टी नेता आरके राजारत्नम के कहने और शंकराचार्य के आशीर्वाद वाले विचार को ध्यान में रखकर पंजा को चुनाव चिह्न बनाने का निर्णय किया था। इस नए चुनाव चिह्नके साथ चुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत हासिल हुई थी।

जलते दीपक से कमल तक

देश में पहले आम चुनाव के समय बीजेपी ऑल इंडिया भारतीय जनसंघ थी। उस वक्त जनसंघ का चुनाव चिह्न जलता हुआ दीपक था। उस चुनाव में एक और पार्टी थी किसान मजदूर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, जिसका चुनावी निशान झोपड़ी था। साल 1977 के चुनाव में यही झोपड़ी निशाल वाली प्रजा पार्टी का विलय दीपक चिह्न वाले जनसंघ और चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाले भारतीय क्रांति दल में हो गया था।

इसके बाद जनता पार्टी नाम की एक नई पार्टी अस्तित्व में आई थी और इसका चुनाव चिह्न कंधे पर हल लिए हुआ किसान था। हालांकि, ये संगठन ज्यादा समय तक नहीं चल पाया था। 1980 में जनता पार्टी के बिखरने के बाद पूर्ववर्ती जनसंघ के नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया था, जिसे चुनाव चिह्न कमल का फूल मिला था।

वहीं चौधरी चरण सिंह की अगुवाई वाली लोकदल को खेत जोतता हुआ किसान चुनाव चिह्न मिला था। इस तरह से इन बड़ी पार्टिंयों को उनका चुनाव चिह्न मिला था।

हाथी और साइकिल

1984 में नेता कांशीराम ने बसपा यानी बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था और हाथी को राजनीतिक पार्टी का चिह्न बनाया था। वहीं, मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी बनाई और उनका चुनावी चिह्न साइकिल था।

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