उपलब्धियों का जश्न सरकारों द्वारा नहीं बल्कि जनता द्वारा मनाया जाना शोभनीय – राणा

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कोटला – व्यूरो रिपोर्ट

जनता द्वारा चुनी हुई सरकारों द्वारा अपनी उपलब्धियों को जनहित में लाभकारी मानते हुए सरकारी खर्चे पर जश्न के रूप में प्रसारित करना तर्कसंगत नहीं माना जा सकता है। यह कहना पूर्व पंचायत समिति सदस्य एवं वर्तमान उप प्रधान पंचायत डोल भटहेड़ साधुराम राणा का है।

उन्होंने कहा कि चुनी हुई सरकारों एवं नुमाइंदों की उपलब्धियों का लेखा जोखा जनता अपने वही खाते में सुरक्षित रखती है और पांच साल वाद उपलब्धियों के मापदंडों के आधार पर व्याज सहित वोट के माध्यम से अदायगी एवं वसूली का फैसला सुना देती है जिससे कई चुनें हुए नुमाइंदों एवं सरकारों की सत्ता में वापसी होती और कई नुमाइंदों एवं सरकारों का सूपड़ा साफ हो जाता है।

अतः विशेष कर हिमाचल प्रदेश में तो सत्ता पर बैठने वाली किसी भी दल की सरकार को तब तक अपनी उपलब्धियों का जश्न नहीं मनाना चाहिए जब तक किसी दल की सरकार लगातार जीत दर्ज नहीं कर पा रही हो। क्योंकि हिमाचल के इतिहास में 1977 के बाद आज तक किसी भी राजनीति दल की सरकार लगातार दूसरी बार सत्ता की दलहीज को नहीं छू पाई है तो फिर कैसे और किस आधार पर मान लिया जाए कि 1977 के बाद किसी भी दल की सरकार ने कोई ऐसी उपलब्धियों को जनहित में करके दिखाया हो जिससे जनता ने पांच साल बाद भी उस दल की सरकार को सत्ता पर बैठने केलिए अपना मत दिया हो।

अतः हिमाचल में पहले पांच साल बाद बारी बारी सत्ता पर बैठने के क्रम से हटकर अन्य राज्यों में कुछ राजनीति दलों की तर्ज़ पर लगातार वापसी के क्रम में बदल कर जनता को दिखाने उपरांत ही काम काज की उपलब्धियों के जश्न मनाने जैसे कार्यक्रमों के आयोजन करने चाहिए अन्यथा बिना उपलब्धियों के सरकारी खर्चे पर किए जाने वाले जश्र जनता के बीच मजाक बनकर राजनीति में फायदे के बजाए घाटे के सौदे सिद्ध होते हैं।

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