दिल्ली – नवीन चौहान
सुप्रीम कोर्ट ने मिड-डे मील वर्कर्स को दो माह की छुट्टियों का मानदेय अदा करने के हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि हाईकोर्ट ने दो माह की छुट्टियों का मानदेय देने का आदेश देकर दरअसल मिड-डे मील वर्कर्स के साथ हुए करार को दोबारा लिख दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रथमदृष्टया सरकार की इस दलील से सहमति जताते हुए हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने का आदेश जारी किया। प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों में सेवाएं दे रहे मिड-डे वर्कर्स को राहत देते हुए उन्हें दो माह की छुट्टियों का मानदेय भी देने के आदेश जारी किया था।
इन्हें सरकार केवल 10 माह का वेतन ही देती है। मिड-डे मील वर्कर्स के संघ ने पूरे वर्ष का वेतन मांगते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने संघ की याचिका को स्वीकार करते हुए सरकारी स्कूलों में हजारों की संख्या में तैनात किए गए मिड-डे मील कर्मियों को 10 के बजाय 12 माह का मानदेय दिए जाने का आदेश दिया था।
इस आदेश को सरकार ने हाईकोर्ट की ही खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी थी जिसे खंडपीठ ने खारिज कर दिया था। अब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। सरकार का कहना था कि यह केंद्र सरकार की योजना है, इसलिए प्रदेश सरकार इस योजना के तहत अपने स्तर पर इन्हें पूरे वर्ष का मानदेय नहीं दे सकती।
इस दलील को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि जब प्रदेश सरकार अपने स्तर पर इन कर्मियों के मानदेय को बढ़ा सकती है तो पूरे वर्ष का मानदेय क्यों नहीं दे सकती। याचिका में आरोप लगाया गया था कि शिक्षा विभाग प्रार्थी संघ के साथ भेदभाव कर रहा है।
शिक्षा विभाग में कार्यरत अन्य शिक्षक और गैर शिक्षक कर्मचारियों को भी पूरे वर्ष का वेतन दिया जाता है, लेकिन उन्हें 10 माह का मानदेय दिया जा रहा है। हाईकोर्ट ने निर्णय में कहा था कि शिक्षा विभाग मिड-डे मील कर्मियों के साथ भेदभाव नहीं कर सकता, इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 14 का सरासर उल्लंघन है।