धर्मशाला में मिली हैं 30 करोड़ वर्ष पुरानी चट्टानें, पर्यटन विभाग को पार्क बनाने के लिए मिली साढ़े आठ लाख की मंजूरी
हिमखबर डेस्क
अंतरराष्ट्रीय पर्यटक नगरी मकलोडगंज के भागसूनाग में जल्द ही भारत के पहले जिओ हेरिटेज डाइवर्सिटी पार्क का निर्माण किया जाएगा। जानकारी के अनुसार भागसूनाग से वाटरफॉल को जाने वाले रास्ते में 250 से 300 मिलियन यानी (30 करोड़) वर्ष पुरानी चट्टानों की पहचान की गई है।
इसको लेकर अब पर्यटन विभाग की ओर से भारत के पहले जियो हेरिटेज डाइवर्सिटी पार्क बनाने के लिए करीब साढ़े आठ लाख का बजट अप्रूव किया गया है। जिसमें भारत के पहले जियो हेरिटेज डाइवर्सिटी पार्क के साथ-साथ एक सेल्फी प्वाइंट और उन प्राचीन चट्टानों संबंधी जानकारी के लिए सूचना पट्ट भी लगाए जाएंगे।
साथ ही चट्टानों को सुरक्षित रखने के लिए बेरिकेड लगाए जाएंगे। गौर हो कि कांगड़ा के धर्मशाला-मकलोडगंज व भागसूनाग में विश्व भर से हर वर्ष पर्यटक पहुंचते हैं। ऐसे में पर्यटकों के लिए अब भौगोलिक हेरिटेज को देखने का भी मौका मिल पाएगा।
पर्यटन विभाग उपनिदेशक विनय धीमान के बोल
पर्यटन विभाग के उपनिदेशक विनय धीमान ने बताया कि जियो हेरिटेज डाइवर्सिटी पार्क को लेकर हाल ही में वन विभाग के साथ बैठक हुई है। उन्होंने बताया कि जियो हेरिटेज डाइवर्सिटी पार्क को लेकर अगले माह वन विभाग सहित संबंधित विभागों की टीम के साथ निरीक्षण किया जाएगा।
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया पूर्व निदेशक एलएन अग्रवाल के बोल
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व निदेशक एलएन अग्रवाल ने बताया कि भागसूनाग मंदिर से भागसू वाटरफॉल को जाते समय रास्ते में फोल्ड होने वाली चट्टाने हैं। ये चट्टानें करोड़ों वर्ष पुरानी हैं। भागसूनाग में पाई जाने वाली इन चट्टानों की आकृति फोल्ड या यूं कहे कि पत्थरों को एक-दूसरे से जोड़े जाने की प्रवृत्ति दिखती है। साथ ही इन चट्टानों में सीमेंट तैयार किए जाने के कण भी पाए गए हैं
यह कहते हैं पर्यटन विभाग के उपनिदेशक
पर्यटन विभाग के उपनिदेशक विनय धीमान का कहना है कि जियो हेरिटेज डाइवर्सिटी पार्क को लेकर साढ़े आठ लाख का प्रस्ताव को निदेशालय भेजा था, जिसे मंजूरी मिल गई है। पर्यटन नगरी मकलोडगंज के समीप भागसूनाग में जियो डाइवर्सिटी पार्क बनाया जाएगा। कार्य को जल्द ही धरातल पर उतारने के लिए आगामी प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
छात्र कर सकेंगे चट्टानों पर रिसर्च
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व निदेशक एलएन अग्रवाल ने बताया कि इन फोल्ड होने वाली चट्टानों का रिसर्च स्कॉलर व छात्रों के साथ-साथ अन्य लोग भी अध्ययन कर सकते हैं। इससे कई और रहस्य सामने आ सकेंगे। इन चट्टानों की पहचान जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व निदेशक एलएन अग्रवाल ने की थी और कहा था कि इन चट्टानों की उत्पति हिमालय के साथ हुई है।