सदियों से ‘चाैंतरे पर न्याय’, हिमाचल में ब्राह्मणों के सबसे बड़े गांव ‘टिटियाना’ में 120 साल बाद ‘शांत

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सदियों से ‘चाैंतरे पर न्याय’, हिमाचल में ब्राह्मणों के सबसे बड़े गांव ‘टिटियाना’ में 120 साल बाद ‘शांत

सिरमौर – नरेश कुमार राधे

हिमाचल प्रदेश के ट्रांसगिरि क्षेत्र के रमणीक गांव ‘टिटियाना’ में 120 साल बाद इतिहास की पुनरावृति होने जा रही है। प्राचीन महासू जी महाराज के मंदिर के प्रांगण में शाठी व पाशी का अनोखा मिलन होने जा रहा है।

करीब एक साल पहले कुल देवता महासू महाराज के सुंदर व भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर गांव की सुंदरता को चार चांद लगाता है।

शाठी व पाशी भाईयों का ऐतिहासिक मिलन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा। शाठी कौरव वंशज हैं, जबकि पाशी पांडव वंशज हैं। हिमालय के पहाड़ों को काली माता का निवास स्थान माना जाता है।

काली माता का एक स्वरूप ठारी माता है। ग्रामीणों के मुताबिक माता को खुश व शांत रखने के लिए इस तरह के पर्व का आयोजन किया जाता है।

रमणीक गांव ‘टिटियाना’

टिटियाना में आयोजित होने वाले शांत का महत्व ये भी है कि यहां दोनों भाई शाठी व पाशी एक जगह एकत्रित हो रहे हैं, लिहाजा पर्व का ऐतिहासिक महत्व बढ़ जाता है।

हालांकि, एक जुलाई को मुख्य कार्यक्रम रखा गया है, लेकिन अनुष्ठान 28 जून से शुरू हो चुके हैं। 30 जून तक गांव में प्रवेश व निकासी की अनुमति नहीं है। घर-घर का हरेक शख्स तैयारी में जुटा हुआ है।

आपको बता दें कि मंदिर के निर्माण व आयोजन के लिए गांव के सरकारी कर्मचारियों ने एक महीने का वेतन दान कर दिया था। इसके अलावा हरेक शख्स ने सामर्थ्य के मुताबिक आर्थिक आहुति दी है।

कार्यक्रम के मुताबिक महासू महाराज व माता ठारी की अनुकंपा से टिटियाना वासी चौंतरे में थाती-माटी के जागरण के महापर्व ‘शांत महायज्ञ अनुष्ठान’ आयोजित कर रहे हैं।

वीरवार को महायज्ञ का आगाज हो गया, लेकिन ये अनुष्ठान गांववासियों तक ही सीमित रखा गया है। ऐसा अनुमान है कि एक जुलाई को 400 गांव के करीब 30 से 40 हजार लोग टिटियाना पहुंचेंगे। दक्षिण हिमाचल के अलावा उत्तराखंड के जौनसार बाबर इलाके तक न्यौते भेजे गए हैं।

‘शांत महायज्ञ अनुष्ठान’ में झूमते श्रद्धालु।

बता दें कि हाल ही के पंचायत चुनाव में चौंतरे पर बैठकर ही सर्वसम्मति से चुनाव करवाने का निर्णय लिया गया था। ये चुनाव महासू महाराज को साक्षी मानकर करवाया गया था।

इसी चौंतरे पर शाठी व पाशी के बीच विवाद को सुलझाया जाता था। विवाद पर समझौता न होने की सूरत में टिटियाना वासियों के निर्णय को अंतिम माना जाता था। चौंतरे पर ठारी माता स्थापित हैं। ठारी माता को न्याय की देवी कहा जाता है।

प्राचीन इतिहास…

ऐतिहासिक दृष्टि से ये गांव 15वीं शताब्दी से पुराना माना जाता है। ऐसी धारणा है कि 1532 ईस्वी में शेरशाह सूरी के शासन को हटाने के मकसद से सिरमौर रियासत के शासक ने चार चौंतरू का गठन किया था। इसके दो मुखिया ब्राह्मण बिरादरी से थे, जबकि अन्य दो राजपूत बिरादरी के थे।

चार चौंतरू में से मौजूदा में उत्तराखंड के जोनसार में हैं, जबकि दो ट्रांसगिरि क्षेत्र में है। एक चौंतरा संगड़ाह इलाके में भी है। बुजुर्ग बताते हैं कि इन चौंतरों पर ऐतिहासिक फैसले भी लिए गए। 1620 मीटर की ऊंचाई पर बसे टिटियाना गांव की आबादी 2500 के आसपास है।

गांव में महासू देवता का पर्व जागरा, पंचमी उत्सव, बूढ़ी दिवाली व बिशू इत्यादि त्यौहारों को धूमधाम से मनाया जाता है। पर्व के मौके पर मंदिर के प्रांगण में प्रसाद के रूप में खेंडा बनाया जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि बाहर से आने वाले मेहमान यदि इसका सेवन एक बार कर लें तो उन्हें हर साल उपस्थिति देनी पड़ती है।

महासू महाराज का चौंतरु

गणेश चतुर्थी के दिन देवता की पालकी को उठाकर स्नान के लिए पारंपरिक बावड़ी तक ले जाया जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि जब गांव में शाठी व पाशी के लोग जयकारों के साथ चलते थे तो महासू महाराज का डोरिया उछाला जाता था।

जिस पक्ष में ये गिरता था, उस पक्ष में उन्नति होती थी। ऐसी भी मान्यता है कि महासू महाराज ने किरमिरिक राक्षस का वध किया था, जिसकी खुशी में लोग इस पर्व को मनाते हैं।

सांस्कृतिक विरासत

गांव की सांस्कृतिक विरासत पुरानी है। नवयुवक मंडल द्वारा रामलीला का आयोजन किया जाता है। बड़ी दिवाली व पंचमी के दिन दूरदराज से लोग आकर सांस्कृतिक व धार्मिक कार्यक्रम का आनंद लेते हैं। यहां के एक सांस्कृतिक  दल ने एक मर्तबा गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में तत्कालीन स्व. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समक्ष भी प्रस्तुति दी थी।

यकीन मानिए कि पूरे गांव में भाईचारे की अलग मिसाल देखने को मिलती है। गांव में होने वाले आयोजन में हरेक जाति के व्यक्ति की सहभागिता होती है। ब्राह्मणों के साथ यहां हरिजन जाति के लोग भी काफी संख्या में रहते हैं।

आजीविका का साधन

वैसे तो गांव की नकदी फसलें गेहूं, मक्की, अदरक, जौ, चौलाई व अखरोट इत्यादि हैं, लेकिन कई परिवारोें के सदस्य सरकारी नौकरियों में उच्च पदों पर भी पहुंच चुके हैं। देवदार के घने जंगलों के बीच कुदरत ने गांव को नैसर्गिक खूबसूरती बख्शी है। पर्यटन की दृष्टि से भी गांव में अपार संभावनाएं हैं।

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