सिरमौर – नरेश कुमार राधे
हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री रेणुका जी में कार्तिक शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक चलने वाला ऐतिहासिक मेला सोमवार से शुरू हो गया। यह मेला हर साल श्रद्धालुओं के बीच आस्था, प्रेम और श्रद्धा का जीवंत प्रतीक बनकर आयोजित होता है। लाखों लोग इस अवसर पर यहां पहुंचकर मां रेणुका और भगवान परशुराम के बीच होने वाले पवित्र मिलन का साक्षात अनुभव करते हैं।
इस साल बतौर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को श्री रेणुका जी मेले में देव पालकियों को कंधा देने का विशेष अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने विधिवत पूजा अर्चना के बाद पालकी को कंधा देकर अंतरराष्ट्रीय श्री रेणुका जी मेले का शुभारंभ किया। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू पूजा अर्चना करने के बाद मेले की महिमा को बढ़ाते हुए इसे हिमाचल की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में बताया।

इस पावन अवसर पर सैकड़ों श्रद्धालु और भक्त श्री रेणुका जी मंदिर पहुंचे, जहां परंपरागत विधियों से मेले का विधिवत शुभारंभ हुआ। मेले की शोभायात्रा ददाहू से शुरू होकर त्रिवेणी घाट के संगम तट तक पहुंचेगी, जहां भगवान परशुराम और उनकी मां रेणुका का भव्य मिलन होगा।
इस पल को जीवंत देखने के लिए आस-पास के श्रद्धालु ही नहीं, बल्कि दूर-दूर से भक्त यहां पहुंचे हैं। रेणुका मेले की सदियों पुरानी परंपरा को सिरमौर राज परिवार आज भी निभाता चला आ रहा है। भगवान परशुराम की पालकी सबसे पहले गिरी नदी के तट पर पहुंची है, जिसका स्वागत शाही परिवार के सदस्य कंवर अजय बहादुर ने किया।
क्या है मान्यता
प्राचीन कथा के अनुसार, राजा सहस्त्रबाहु एक बार महर्षि जमदग्नि के आश्रम में पहुंचे। महर्षि ने राजा और उसके सैनिकों का सम्मानपूर्वक स्वागत किया, परंतु सहस्त्रबाहु की नज़र ऋषि के पास बंधी हुई दिव्य कामधेनु गाय पर पड़ी। कामधेनु, जो अमूल्य और अद्वितीय गाय थी, उसकी शक्तियों के कारण सहस्त्रबाहु उसे अपने साथ ले जाने की जिद करने लगे।

महर्षि जमदग्नि ने उन्हें समझाने का प्रयास किया कि यह गाय उनके पास कुबेर जी की अमानत है और इसे किसी अन्य को देना उचित नहीं होगा। सहस्त्रबाहु को यह अस्वीकार करना सहन नहीं हुआ, और उन्होंने क्रोधित होकर महर्षि की हत्या कर दी।
इस घटना के बाद, मां रेणुका शोक में डूब गई और राम सरोवर में कूद गईं, और सरोवर ने उनकी देह को समाहित कर लिया। भगवान परशुराम, जो महेंद्र पर्वत पर तपस्या में लीन थे। उन्हें योगशक्ति से इस घटना का आभास हुआ और अपने पिता की हत्या और मां के दुःख से आहत होकर सहस्त्रबाहु का वध कर दिया।
इसी दौरान, भगवान परशुराम ने वचन लिया था कि वह हर साल इसी समय अपनी मां रेणुका से मिलेंगे, और यह वचन आज भी जारी है। इस ऐतिहासिक और भावनात्मक मिलन के अवसर को देखने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु श्री रेणुका जी पहुंचते हैं।
हिमाचल प्रदेश के प्राचीन मेलों में से एक और अध्यात्म, आस्था तथा प्रेम का प्रतीक श्री रेणुका जी मेला सोमवार यानी 11 नवंबर से शुरू हो रहा है। हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक यह पवित्र मेला उत्तर भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री रेणुका जी में मनाया जाता है। श्री रेणुका जी मेला एक ऐसा अवसर है जो न केवल भक्तों के लिए आध्यात्मिक अनुभूति का माध्यम है, बल्कि मां के वात्सल्य और पुत्र की श्रद्धा का सजीव चित्रण भी करता है।
ये रहे उपस्थित
इस दौरान विधायक अजय सोलंकी व राज परिवार के सदस्य कंवर अजय बहादुर, मुख्यमंत्री के करीबी नेता बृजराज ठाकुर, रुपेंद्र सिंह ठाकुर और कांग्रेस नेता तपेंद्र सिंह चौहान भी उपस्थित रहे।