शाहपुर: चार बार नेशनल खेल चुकी हॉकी खिलाड़ी रिया व रशिम की मदद को आगे आए अभिषेक ठाकुर

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शाहपुर- नितिश पठानियां 

चार बार नेशन खेल चुकी शाहपुर के परसेल निवासी हॉकी खिलाड़ी रिया व रशिम की मदद को कई लोगों ने अपने हाथ बढ़ाए है। इसी के मद्देनजर करतार मार्किट शाहपुर के मालिक व समाजसेवी नम्बरदार अभिषेक ठाकुर ने सबसे पहले दोनों खिलाड़ियों के घर जाकर उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान की है,इसके अलावा उन्होंने दोनों बेटियों को खेलने के लिए अल्फा कंपनी की हॉकी किट भी प्रदान की है।

अभिषेक ठाकुर ने हॉकी की ट्रेंनिग जारी रखने के लिए अपने खर्च पर पटियाला भेजने की पेशकश भी की है।उन्होंने कहा कि गरीबी की बेड़ियां इन बेटियों की काबलियत व हुनर को जकड़ नहीं सकती,वे इन बेटियों की पूरी मदद करेंगे।

उन्होंने कहा कि इन बेटियों के पिता प्रभात चौधरी भी अपने समय में हॉकी के जाने माने खिलाड़ी रहे है तथा हर किसी के साथ उनके दोस्ताना सबंध थे पर अब वे इस दुनियां में नहीं है तो हमारा फ़र्ज़ बनता है कि इन बेटियों की प्रतिभा को पैसों की कमी के चलते खत्म न होने दिया जाए।

उन्होंने कहा कि वे दोनों बेटियों को अपने खर्च पर ट्रेंनिग करवाएंगे। यहां बता दे कि शाहपुर हलके की प्रेई पंचायत के परसेल गांव की गरीबी रेखा के नीचे के (बीपीएल) परिवार से संबंध रखने वाली हाकी खिलाड़ी 20 वर्षीय रिया व 17 वर्षीय रश्मि चार बार नेशनल खेल चुकी हैं। तीसरी बहन 15 वर्षीय नेहा दसवीं में पढ़ती है।

स्लेटपोश मकान के एक कमरे में तीनों बहनें मां के साथ रह रही हैं। अक्टूबर 2016 में इन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब पिता प्रभात सिंह की बीमारी से मौत हो गई। सरकारी मदद के नाम पर उन्हेंं तब महज़ सिर्फ 10 हजार रुपये मिले थे। प्रभात सिंह की जमा पूंजी उनकी बीमारी पर खर्च हो गई, जो बचा था उसे मां कल्पना ने बेटियों की कोचिंग पर खर्च कर दिया।

रिया स्पोट्र्स हास्टल माजरा (सिरमौर) व रश्मि साई धर्मशाला में हाकी की बारीकियां सीखती थीं। अब मां कल्पना मनरेगा में दिहाड़ी लगाकर बेटियों का पालन-पोषण तो कर रही हैं, लेकिन उन्हेंं स्पोट्र्स हास्टल नहीं भेज पा रही। होनहार बेटियां हाकी में अपना व देश का नाम रोशन करना चाहती हैं, लेकिन गरीबी बेडिय़ां बन गई है।

मां के साथ तीन बहनें छोटे से घर में गुजर-बसर कर रही हैं। इनके पास शौचालय तक की सुविधा भी नहीं है। कहने को परिवार बीपीएल सूची में शामिल है, लेकिन अभी तक न तो घर और न ही शौचालय की सुविधा इन्हें मुहैया करवाई गई है।

रिया व रश्मि बताती हैं कि पिता प्रभात सिंह भी हाकी खिलाड़ी थे। हाकी की एबीसी उन्होंने पिता से ही सीखी। पिता जिंदा थे तो उन्हेंं कोच की जरूरत नहीं थी। बचपन से हाकी स्टिक थाम ली। वे पिता की कोचिंग से ही नेशनल खेल पाईं। पिता के बाद अब कोई सहारा नहीं मिल रहा ।

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