शाहपुर – नितिश पठानियां
“शांति-निवास ठम्बा” में पठानिया परिवार द्वारा आयोजित “श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह” का आज विधिवत समापन्न हुआ।
मण्डपाचार्य पं. वाणी भूषण गैरोला चन्द्रभूषण शर्मा, तुषार, अंकित, आकाश पंत, रवि ने यजमान परिवार मण्डप आवाहित देव पूजां करवाया।
सुप्रसिद्ध कथा-वाचक बद्री प्रसाद जी ने श्रीमद्भागवत कथा का बिधिवत समापन्न करते हुए ब्यासपीठ से नव-वर्ष 2081 की मंगल कामना की बधाइयां दी, और कहा कि 9 अप्रैल चैत्रशुक्ल प्रतिपदा से हमारा विक्रमी संवतसर नव वर्ष प्रारम्भ होने जा रहा है।
जिस प्रकार आप पाश्चात्य संस्कृति के नव वर्ष पर एक दूसरे को वधाइयां देते है, उससे भी बढ़-चढ़कर आपस में एक दूसरे को शुभकामनाये दें और इसी दिन से वसंत-नवरात्र प्रारम्भ हो रहे हैं, आप सब में शक्ति स्वरूपा माँ-भगवती का आवाहन करें।
इस वर्ष शिव विंशति का कालयुक्त नाम का संवत्सर होगा, राजा मंगल और मंत्री शनि होंगे जो दोनों कुर स्वभाव के हैं जो देश-दुनिया में अपनी मनमानी से जनमानस को आक्रान्त करेंगे लेकिन विश्व में भारत का परचम लहराएगा और सनातन पुनः विश्व में स्थापित होगा।
शास्त्री जी ने कहा कि इस जीवन का कमाया धन अगले जन्म में काम नहीं आता मगर इस जीवन का कमाया पुण्य जन्मों-जन्मों तक काम आता है, यद भगवान ने आपको धन दिया है तो परमार्थ में लगाये आपका धन, पुण्य, कीर्ति, यश, मान बढ़ेगा ।
श्रीमद्भागवत कथा जीवन की परमार्थ-यात्रा है, जो इस जन्म का आनंद है, पिछले जन्म की करुणा है और अगले जन्म का परमार्थ है, भागवत कथा परमसत्य की अनुभूति कराने वाला महापुराण है।
भागवत-कथा एक सार्वजनिक प्याऊ है जिसमे सबको सामान रूप से बिना भेद-भव के आध्यात्म-रस वितरण किया जाता है। श्रीमद्भागवत भगवान के श्रीमुख से निःसृत सद्-ग्रन्थ है, जो मनुष्य के मृत्यु भय को समाप्त कर मृत्यु को मंगलमय बना देता है।
श्रीमद्भागवत पुराण भगवान के अवतारों का इतिहास है इसलिए इसे सदैव सुनना और पढ़ना चाहिए। श्रीमद्भागवत को किसी बैष्णव ब्रहामण के श्रीमुख से ही पंडाल में ही बैठकर सुनना चाहिए ।सुदामा प्रसंग में शास्त्रीजी ने कहा कि “न स द्विजो यो न करोति संध्या, न सा या मनसो विशुद्धिम् ।
शुद्धिर्न सा यत्र न सत्यमस्ति सत्यन्न तनिर्भयता न यत्र । ब्राह्मणों को हर हाल में त्रिकाल संध्या करनी ही चाहिए । भगवान को सभी ने पूजा पर भगवान ने “कृष्णस्या सीत सखा, ब्राह्मणों ब्रह्म वितमः विरक्त इन्द्रियारथेषु प्रशान्तात्मा जितेन्द्रियः ||
भगवान कहना चाहते हैं कि कोई सुदामा जैसा बने तो सही मैं मित्र बनाने को तैयार हूँ। शास्त्री जी ने कहा कि दान का अधिकारी केवल सुपात्र ब्राह्मण ही होता है, अन्य नहीं। “सुपात्र दानत च भवेत धनाढ्यो, धना प्रभावेण करोति पुण्यम् । पुण्यप्रभावात सुरलोकवासी पुनरधनाढयः पुनरेव भोगी” ।
दान सदैव सुपात्र को ही देना चाहिए ।कथा समाप्ति के बाद द्रोणाचार्य महाविद्यालय के संस्थापक गंधर्व पठानिया, बलबिन्दर पठानिया जी ने सभी अपने इष्टमित्रों एवं समस्त ग्रामवासियों के साथ भागवत, ब्यास, कन्या पूजन किया।
नगर, ग्राम, क्षेत्र के सैकड़ों गणमान्य कथा-रशिकों ने अपनी उपस्थिति दर्जकर कथा का आनंद लिया और भंडारे का प्रसाद ग्रहण किया। पठानिया परिवार ने उपस्थित मंगलमयी माताओं, श्रोतावृंद सहयोगियों का आभार सधन्यवाद किया ।