हिमखबर डेस्क
रहस्यों का समंदर समेटे हिमाचल में हर कदम पर एक नई खोज है। इन रहस्यों को इसकी गहराई तक पहुंचे बिना नहीं समझा जा सकता। परंपराओं और बेजोड़ संस्कृति ही हिमाचल को देश के बाकी राज्यों से अलग रखती है। रामायण से लेकर महाभारत और वेदों से लेकर पुराणों तक हिमाचल का इतिहास गौरवशाली है और उससे भी गौरवपूर्ण है यहां की संस्कृति।
आज हम बात कर रहे हैं हिमाचल के किन्नौर में होने वाले उस विवाह की, जिसमें अनोखी परंपरा या रिवाज से शादी की शुरूआत होती है। आमतौर पर जब लडक़े या लडक़ी की शादी करनी होती है, तो पहले रिश्ते की बात चलती है, फिर आगे की कार्रवाई होती है, लेकिन किन्नौर के सीमांत क्षेत्रों में शादी जरा हटकर होती है या यूं कहें कि पारंपरिक रीति-रिवाजों से अलग। यहां शादी की शुरूआत शराब से होती है।
कैसे तय होता है लडक़ी-लडक़े का रिश्ता
हिमाचल में 16 संस्कारों में एक महत्वपूर्ण संस्कार है विवाह। प्रदेश के हर जिला में अलग-अलग रीति-रिवाजों से विवाह होता है। ऐसा ही एक रिवाज है परैणा विवाह या जानेरटंग विवाह, जो किन्नौर के सीमांत क्षेत्रों में होता है। यहां होने वाले दूल्हे का मामा या रिश्तेदार लडक़ी के घर सुरा या छांग (शराब) लेकर जाता है और अपने आने का प्रायोजन या मकसद बताता है।
अगर लडक़ी वालों को रिश्ता मंजूर होता है, तो दूल्हे का मामा या रिश्तेदार शराब की उस बोतल पर मक्खन लगा देता है और उस मक्खन को लडक़ी के परिजनों के माथे पर लगा देता है। फिर सभी लोग खुशी से शराब की बोतल पीते हैं। स्थानीय भाषा में इस रस्म को कोरयांग कहा जाता है। इसके बाद लामा द्वारा शादी की तारीख तय की जाती है और फिर लडक़े का मामा या रिश्तेदार फिर शराब लेकर लडक़ी के घर शादी की तारीख बताने जाता है।
ऐसे जाती है बारात
तय तारीख के मुताबिक दूल्हे का पिता 10 से 15 लोग लेकर लडक़ी के घर बारात लेकर जाता है। अब बड़ी बात यह है कि यहां दूल्हा बारात के साथ नहीं जाता है। हालांकि इक्का-दुक्का जगह दूल्हा बारात के साथ चला भी जाता है। दुल्हन के घर बारात पहुंचते ही शराब की महफिल सजती है। नाच-गाना होता है और बाकी रस्में निपटाई जाती हैं।
बारात में शामिल 2-3 लोग दुल्हन के कमरे में जाते हैं और उसके माथे पर मक्खन लगाते हैं, शराब देते हैं। दूसरे दिन बारात दुल्हन को लेकर वापस आ जाती है और छोटी-मोटी रस्में निभाकर शादी संपन्न हो जाती है।
किन्नौर में शादी की यह परंपरा आज भी कायम है। हालांकि समय के साथ इसमें थोड़ा बदलाव भी हुआ है और आधुनिकता का रंग भी चढ़ा है, लेकिन जिला के कई क्षेत्रों में आज भी पारंपरिक रीति-रिवाजों का निर्वहन किया जा रहा है, ताकि संस्कृति को संजोए रखा जा सके।

