प्रागपुर, आशीष कुमार
पंचांग के अनुसार 10 जून,
गुरुवार ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को है. इसी दिन को शनि जयंती के रूप में मनाते हैं. शनि देव के पिता सूर्य और माता छाया है. शनि जयंती पर शनि देव की विशेष पूजा अर्जना की जाती है. मान्यता है कि इस दिन शनि देव की पूजा और व्रत करने से शनि देव जीवन में शुभ फल प्रदान करते हैं. इसके साथ ही महादशा, शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैय्या के दौरान अशुभ फल प्रदान नहीं करते हैं
शनि जयंती का दिन शनि देव को समर्पित है. शनि देव को नवग्रहों में एक प्रमुख ग्रह माना गया है. सभी 9 ग्रहों में शनि को विशिष्ट स्थान प्राप्त है. शनि ग्रह को दंडाधिकारी का दर्जा प्राप्त है. भगवान शिव ने उन्हें ये पद प्रदान किया है
शनि देव गलत और अनैतिक कार्यों को करने से नाराज होते हैं.
परिश्रम करने वालों का अपमान नहीं करना चाहिए
निर्धन और कमजोर व्यक्तियों को परेशान नहीं करना चाहिए.
दूसरों के हितों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए.
दूसरों के धन को हड़पने की कोशिश नहीं करनी चाहिए
मित्र और रिश्तेदारों को धोखा नहीं देना चाहिए.
पशु-पक्षियों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए.
शनि देव इन कार्यों को करने से प्रसन्न होते हैं
दूसरों की सदैव मदद करें.
जरूरमंद व्यक्तियों की सहायता करनी चाहिए.
कुष्ट और गंभीर रोगों से पीड़ित व्यक्तियों की सेवा करनी चाहिए.
ज्येष्ठ मास मे प्याऊ लगाने चाहिए, प्यासे लोगों को जल पीलाना चाहिए.
प्रकृति की रक्षा और सेवा करनी चाहिए.
निर्धन व्यक्तियों को अन्न, काला छाता और काला कंबल आदि का दान करना चाहिए.
शनि चालीसा का पाठ करना चाहिए
शनि जयंती को तिल सरसों माह सरसों के तेल का दान करना सर्वोत्तम माना गया है
शनि से संबंधित लघु मंत्र ‘ ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:’ का निरंतर पूर्ण श्रद्धाभाव से जाप करते रहने से शनि प्रसन्न होते हैं और जातक के दुख व कष्टों का निराकरण होने लगता है।
आचार्य देशबंधु पुजारी शनि मंदिर लोहर सुनहेत