सिरमौर – नरेश कुमार राधे
सिरमौर के छोटे से गांव गत्ताधार की बेटी कृतिका शर्मा ने यह साबित कर दिखाया है कि सपनों की ऊंचाई गांव की सीमाओं से नहीं, हौसले से तय होती है।
पढ़ाई के साथ-साथ एनसीसी में शानदार प्रदर्शन करने वाली कृतिका के भीतर पहाड़ों की चढाई चढ़ते-चढ़ते पर्वतारोहण का ऐसा जुनून जागा कि अब वह देश का तिरंगा दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर लहराने के मिशन पर निकल पड़ी हैं।
यह महज एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि हजारों गांवों की बेटियों के लिए प्रेरणा है। जिस उम्र में ज़्यादातर लड़कियां अपनी ज़िंदगी की दिशा तय करने में लगी होती हैं, उस उम्र में कृतिका ने मेहनत, अनुशासन और मजबूत इरादों के दम पर पूरे देश से चुने गए सिर्फ 10 एनसीसी कैडेट्स में अपनी जगह बनाई।
खास बात यह है कि हिमाचल, हरियाणा और पंजाब से चयनित होने वाली वह इकलौती कैडेट हैं, जो इस ऐतिहासिक एवरेस्ट अभियान का हिस्सा बनी हैं।
देशभर के 17 लाख एनसीसी कैडेट्स में से केवल 10 कैडेट्स का चयन माउंट एवरेस्ट एक्सपीडिशन के लिए हुआ। कृतिका वर्तमान में पांवटा साहिब के एक कॉलेज में एनसीसी कैडेट हैं और अब भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए एवरेस्ट की ऊंचाइयों को छूने निकली हैं।
टीम ने हाल ही में दिल्ली में रिपोर्ट किया, जहां 11 मार्च से शारीरिक प्रशिक्षण (PT) शुरू हुआ। इसके बाद 3 अप्रैल को रक्षा मंत्री द्वारा टीम को झंडा सौंपा गया, और 5 अप्रैल को सभी सदस्य काठमांडू, नेपाल के लिए रवाना हो गए। वहां से लुकला तक की उड़ान और फिर एवरेस्ट बेस कैंप तक की ट्रैकिंग शुरू की गई है।
अभियान का नेतृत्व कर्नल अमित बिष्ट कर रहे हैं। टीम में 19 पर्वतारोही और 6 समर्थन सदस्य शामिल हैं। कैडेट्स में 5 लड़के और 5 लड़कियां हैं, वहीं अन्य सदस्य अधिकारी वर्ग के अनुभवी लोग हैं।
अभियान के दौरान टीम ने कई वरिष्ठ हस्तियों से मुलाकात की, जिनमें रक्षा स्टाफ प्रमुख, सेना प्रमुख, नेपाल में भारत के राजदूत, डीजी एनसीसी और वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शामिल हैं।
इस गौरवमयी उपलब्धि के पीछे कृतिका का संघर्ष और समर्पण छिपा है। लिखित परीक्षा, इंटरव्यू और कठोर शारीरिक परीक्षण को पार करते हुए उसने यह मुकाम हासिल किया है।
उसके पिता भरत शर्मा ने गर्व के साथ कहा, “मुझे बेहद खुशी है कि मेरी बेटी उन 10 होनहारों में शामिल है जो माउंट एवरेस्ट जैसी चुनौतीपूर्ण चोटी को फतह करने निकले हैं।”
कृतिका ने यह साबित कर दिया है कि “बेटियां नाज़ुक नहीं होतीं, वो बहादुर होती हैं।” गांव से निकलकर उसने यह संदेश दिया है कि सपनों को पंख देने के लिए हौसला चाहिए होता है, और यह हौसला कृतिका जैसे युवाओं में कूट-कूट कर भरा है।
टीम के 3 जून को भारत लौटने की उम्मीद है। तब तक देश की निगाहें एवरेस्ट पर और दिलों की दुआएं कृतिका के साथ हैं — जिसने न केवल सिरमौर बल्कि पूरे हिमाचल का नाम रोशन कर दिया है।