भाई-बहन के अटूट बंधन का पर्व, जानें भाई दूज का शुभ मुहूर्त

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हिमखबर डेस्क

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला भाई दूज केवल एक पारंपरिक त्योहार नहीं, बल्कि यह भाई-बहन के पवित्र और प्रेमपूर्ण रिश्ते का उत्सव है. इस साल भाई दूज 23 अक्टूबर 2025 (गुरुवार) को मनाया जाएगा. इस दिन बहन अपने भाई की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती है, जबकि भाई अपनी बहन की सुरक्षा और सम्मान का वचन देता है.

आचार्य अमित कुमार शर्मा के अनुसार “इस बार द्वितीया तिथि 22 अक्टूबर की रात 8 बजकर 16 मिनट से शुरू होगी और 23 अक्टूबर की रात 10 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगी. भाई दूज का शुभ मुहूर्त 23 अक्टूबर को दोपहर 1 बजकर 28 मिनट से 3 बजकर 49 मिनट तक रहेगा.”

भाई दूज 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

  1. द्वितीया तिथि आरंभ: 22 अक्टूबर, रात 8:16 बजे
  2. द्वितीया तिथि समाप्त: 23 अक्टूबर, रात 10:30 बजे
  3. शुभ मुहूर्त: 23 अक्टूबर को दोपहर 1:28 बजे से 3:49 बजे तक

इस समय तिलक करना और पूजा करना अत्यंत शुभ माना गया है.

भाई दूज क्या होता है?

बहनें इस दिन अपने भाई के माथे पर रोली, चावल और सिंदूर से तिलक करती हैं, आरती उतारती हैं और कलावा बांधती हैं. यह कलावा भाई की दीर्घायु और रक्षा का प्रतीक माना जाता है. बदले में भाई अपनी बहन को उपहार देता है, जो उसके स्नेह और कृतज्ञता का प्रतीक होता है.

भैया दूज पर कौन किसके घर जाता है?

पंडित उमेश चंद्र नौटियाल के अनुसार अक्सर लोग रक्षाबंधन और भाई दूज में भ्रम कर बैठते हैं. रक्षाबंधन के दिन भाई अपनी बहन के घर नहीं जाता, बल्कि बहन भाई के घर जाकर राखी बांधती है, लेकिन भाई दूज के दिन भाई ही बहन के घर जाता है. यह दिन उस पवित्र प्रेम का प्रतीक है, जब भाई अपनी बहन के घर आदरपूर्वक पहुंचता है और बहन उसका तिलक कर स्वागत करती है.

रिवाज और परंपराएं

  • सुबह स्नान के बाद घर की सफाई और दीप जलाना.
  • यमुना मैया और यमराज जी की पूजा की जाती है.
  • भाई का स्वागत थाली से: थाली में दीपक, तिलक, कलावा, मिठाई और अक्षत रखे जाते हैं.
  • तिलक और आरती: भाई के माथे पर तिलक लगाकर आरती की जाती है.
  • भोजन और स्नेह भोज: बहन भाई को अपने हाथों से भोजन कराती है, जिसे शुभ माना गया है.
  • उपहार और आशीर्वाद: भाई अपनी बहन को उपहार देकर आशीर्वाद प्राप्त करता है.

पौराणिक कथा: जब यमराज पहुंचे थे यमुना मैया के घर

आचार्य अमित कुमार शर्मा ने बताया, “निर्णय सिंधु और व्रतराज ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि भगवान सूर्य की पुत्री यमुना देवी और सूर्य के पुत्र यमराज दोनों भाई-बहन थे. यमुना देवी अपने भाई यमराज से बहुत स्नेह करती थीं और उन्हें बार-बार अपने घर आने का निमंत्रण देती थीं, लेकिन मृत्यु के देवता यमराज अपने कार्यों में इतने व्यस्त रहते कि जा नहीं पाते थे.

एक दिन यमुना मैया ने ठान लिया कि “आज तो चाहे जो हो जाए, भैया को घर बुलाकर रहूंगी.” यमराज ने बहन की जिद पूरी की और पहली बार अपनी बहन के घर पहुंचे. इस दौरान यमुना जी ने अपने भाई का स्वागत बड़ी श्रद्धा से किया. उन्होंने तिलक लगाया, स्वादिष्ट भोजन परोसा और आदरपूर्वक उनके चरण छुए.

क्यों मनाया जाता है भाई दूज?

यमराज अपनी बहन यमुना के इस स्नेह और सेवा से प्रसन्न हो गए. उन्होंने बहन से कहा, “बहन, मांगो जो मांगना हो.” यमुना मैया ने विनम्रता से कहा, “भैया, आज के दिन जो भी बहन अपने भाई का तिलक करे और उसकी आरती उतारे, उसे तुम्हारा आशीर्वाद मिले उसका भाई दीर्घायु, स्वस्थ और सुखी रहे.” यमराज ने वरदान दे दिया. उसी दिन से कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भाई दूज के रूप में मनाया जाने लगा.

भाई को कलावा बांधती हैं बहनें

भाई दूज का धार्मिक और आध्यात्मिक अर्थ गहरा है. इस दिन बहन अपने भाई की लंबी आयु के लिए तिलक करती है. यह तिलक केवल एक रिवाज नहीं, बल्कि आशीर्वाद का प्रतीक है. लाल रोली से तिलक लगाने के बाद चावल के अक्षत लगाए जाते हैं, जो स्थायित्व और समृद्धि का संकेत हैं. इसके बाद भाई को कलावा बांधा जाता है, जो त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संरक्षण का प्रतीक है. माना जाता है कि यह धागा भाई को बुरे ग्रहों, बुरे कर्मों और नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाता है.

आचार्य अमित कुमार शर्मा कहते हैं, “भाई दूज का तिलक केवल रीति नहीं, बल्कि एक ऊर्जा का संचार है. इस दिन बहन की प्रार्थना भाई की रक्षा कवच बन जाती है. जिन महिलाओं या कन्याओं के भाई नहीं हैं, वे इस दिन भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराम, हनुमान जी या भगवान शिव की पूजा कर सकती हैं और उन्हें कलावा बांध सकती हैं. इससे भी वही पुण्य और आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो भाई को तिलक करने से मिलता है.”

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