बापू को याद करके तीन दिन तक रोया था पूरा शिमला, पालकी में महात्मा का चित्र रखकर निकली थी शोक यात्रा

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हिमखबर डेस्क

अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी 30 जनवरी 1948 को देह से स्मृति हो गए। ब्रिटिश राज के दौरान देश की समर कैपिटल शिमला से महात्मा गांधी का नजदीकी रिश्ता था। जब शिमला के लोगों को बापू के शहीद होने की खबर मिली तो यहां लोग रोते-बिलखते सड़कों पर आ गए। तत्कालीन अंग्रेजी ट्रिब्यून में इसका जिक्र है।

महात्मा गांधी को दिल्ली में शाम को पांच बजकर सत्रह मिनट पर गोली मारकर शहीद कर दिया गया था। अगले दिन ट्रिब्यून में खबर प्रकाशित हुई। उस समय ट्रिब्यून शिमला से छपा करता था और इसका कार्यालय बैंटनी कैसल इमारत में था। ट्रिब्यून में बताया गया कि शिमला में लोग रोते हुए सड़कों पर निकल आए थे।

अगले दिन यानी 31 जनवरी को शिमला में एक लंबा जुलूस निकाला गया। एक पालकी में गांधी जी का चित्र रखकर बिलखती जनता ने बापू को याद किया। तीन दिन तक शिमला में शोक का समय रहा। महात्मा गांधी पर शोधरत और उन पर केंद्रित पुस्तक के लेखक विनोद भारद्वाज बताते हैं कि तब ग्रामीण इलाकों में भी शोक रहा था और दुखी लोगों ने घरों में चूल्हे तक नहीं जलाए थे।

ट्रिब्यून अखबार की कटिंग

महात्मा गांधी का शिमला से इस कदर लगाव था कि उन्होंने यहां कुल दस यात्राएं की। बापू यहां सबसे पहले वर्ष 1921 में आए थे और अंतिम यात्रा वर्ष 1946 में की थी। अंग्रेज हुकूमत के साथ वार्ता के लिए बड़े नेता शिमला आते थे। महात्मा गांधी ने आजादी के बाद शिमला की कोई यात्रा नहीं की। जनवरी की 30 तारीख को उन्हें दिल्ली में गोली मारकर शहीद कर दिया गया।

बापू की शिमला यात्राएं और उनका मकसद

महात्मा गांधी ने पहली यात्रा 12 मई 1921 को की थी। उनका शिमला प्रवास 17 मई 1921 तक रहा। इस दौरान उनकी वायसराय लार्ड रीडिंग से मुलाकात हुई। बापू ने 14 मई को आर्य समाज शिमला में महिला सम्मेलन को संबोधित किया। फिर 15 मई को ईदगाह मैदान शिमला में जनसभा की।

इस दौरान वे उपनगर चक्कर की शांति कुटीर में निवासरत रहे। फिर महात्मा गांधी दस साल बाद मई महीने में ही शिमला आए। तब वे 13 मई से 17 मई तक शिमला में रहे। इस अवधि में वे वायसराय लार्ड विलिंगडन सहित अन्य अफसरों से गांधी इरविन पैक्ट पर पैदा हुए गतिरोध पर चर्चा कर रहे थे।

उन्होंने फिर 14 मई को रिज पर जनसभा भी की थी। तब गांधीजी जाखू हिल के फरग्रोव में लाला मोहनलाल के निवास में ठहरे थे। जुलाई महीने में वर्ष 1931 को बापू ने शिमला की तीसरी यात्रा की। इस दौरान उनका यहां कुल 8 दिन का प्रवास रहा। यहां गांधी इरविन पैक्ट पर नए सिरे से चर्चा हुई। इस बार भी वे फरग्रोव में ही प्रवास कर रहे थे।

इसी साल अगस्त में चौथी यात्रा की। फिर गांधी जी 25 से 27 अगस्त के बीच शिमला प्रवास के समय गांधी इरविन पैक्ट के नए समझौते पर साइन हुए। उसके बाद महात्मा गांधी सितंबर 1939 में शिमला आए। वे 4 सितंबर को शिमला आए। तब दूसरे वर्ल्ड वार का वक्त था और वायसराय लिनलिथगो से इस युद्ध में भारत को शामिल करने से जुड़े पहलुओं पर उनकी चर्चा हुई थी।

रिज पर महात्मा गांधी की प्रतिमा

इसी कड़ी में 26 व 27 सितंबर को फिर से लॉर्ड लिनलिथगो के साथ दूसरे विश्व युद्ध की स्थितियों पर बातचीत हुई। फिर 29 जून 1940 की यात्रा में महात्मा गांधी ने वायसराय को अवगत करवाया कि युद्ध भारतवासियों पर थोपा गया है। इसी साल 24 जून से 16 जुलाई के बीच गांधी ने शिमला में सबसे लंबा प्रवास किया।

कुल 23 दिनों के प्रवास में वेवल प्लान पर चर्चा के अलावा बड़े नेताओं से मुलाकात की। तब मेनरविला में ठहराव के दौरान गांधी की प्रार्थना सभाएं भी होती थीं। गांधी की अंतिम शिमला यात्रा 2 मई से 14 मई 1946 को हुई। कैबिनेट मिशन के दौरान क्रिप्स प्रस्तावना पर चर्चा हुई।

विनोद भारद्वाज कहते हैं कि शिमला में गांधी जी से जुड़ी अनेक स्मृतियां हैं। रिज मैदान पर राष्ट्रपिता की प्रतिमा के समक्ष देश-विदेश के सैलानी चित्र खिंचवाते हैं। ये प्रतिमा गवाही देती है कि बापू के आदर्श हमेशा प्रासंगिक रहेंगे।

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