नकली दुल्हन, शराब से पूजा और परियों का जिक्र…हिमाचल में 5 हजार साल पुराने राउलाने मेले की क्यों हो रही चर्चा?

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हिमखबर डेस्क

चेहरा पूरी तरह से ढका हुआ। बदन पर चांदी के गहने। पूजा-अर्चना के बाद जश्न के बीच लोग नाच गा भी हैं। मनाया जा रहा है। सोशल मीडिया पर इसकी तस्वीरें खूब वायरल हो रही हैं। ट्वीटर से लेकर इंस्टाग्राम पर फोटो की धूम है। फोटो हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के कल्पा के राउलाने फेस्टिवल की है। यह फेस्टिवल अपने आप में अलग और अनोखा है। ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं कि राउलाने फेस्टिवल (मेला) क्या और क्यों मनाया जाता है।

हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है और हर जिले में अलग अलग कल्चर है। ऐसा ही एक जिला है जनजातीय जिला किन्नौर, जो की अपनी खूबसूरती औऱ सेब के लिए जाना जाता है। यहाँ के रीति-रिवाज़ पूरे हिमाचल अलग हैं। बोले से लेकर खानपान और रहन सहन अलग है।

दरअसल, कल्पा किन्नौर जिले का मुख्यालय है और प्रसिद्ध टूरिस्ट डेस्टिनेशन भी है। यहीं पर 5 हजार साल पुराना राउलाने फेस्टिवल (मेला) मनाया जाता है। यह त्योहार सर्दियों के आगमन पर मनाया जाता है और इसमें बौद्ध लेकर हिन्दू धर्म के लोग हिस्सा लेते हैं। सोशल मीडिया पर इस मेले की खासी चर्चा हो रही है और इंस्टाग्राम से लेकर एक्स पर फोटो के साथ पोस्ट डाली जा रही है। इस मेले की तस्वीरें लोगों का ध्यान खींच रही हैं।

कैसे मनाते हैं इस अनोखे त्योहार को

राउलाने मेले में दोनों धर्म के लोग हिस्सा लेते है और कुल देवता की पूजा से इसका आगाज होता है। बताया जाता है कि कल्पा में गुप्त देवता का मंदिर और उनकी पूजा फाल्गुन के दौरान 7 दिन तक की जाती है। इसी दौरान पुरुष महिलाओं की पारंपरिक वेश भूषा (दोढू) पहनते हैं औऱ फिर मंदिर में वाद्ययंत्र बजाने वाले के सामने विधिवत पूजा की जाती है। इस पूजा को निगारो पूजा कहते हैं।

सबसे अहम बात है कि पूजा के लिए शराब का इस्तेमाल भी या जाता है। माना जाता है कि इस पूजा को अगर ना किया जाए तो दोष लगता है। सदियों से इस परंपरा को निभाया जा रहा है। लोग मानते हैं कि पूजा और इस मेले को मनाने से कुल देवता खुश रहते हैं और फिर पूरे इलाके में किसी भी प्रकार की आपदा नहीं आती है।

मेले के दौरान राउलाने (नकली दुल्हन) और राउला (पुरुष) बनाएं जाते हैं हालांकि, ये दोनों किरदार पुरुष ही निभाते हैं।राउलाने को महिलाओं को पारम्परिक वेशभूषा और जेवर के साथ ब्रह्मा, विष्णु के साथ मंदिर ले जाया जाता है और चेहरे को गाछी (बंद कमर वस्त्र) से ढक दिया जाता है। मान्यता है कि यदि चेहरा ढके हुए पुरुष को कोई पहचान ले तो यह बेहद शुभ होता है. कल्पा के इस मेले को चीने क्यांग के नाम से भी जाना जाता है।

राउलाने मनाने का क्या महत्व

फाल्गुन माह में देवी-देवता स्वर्ग लोक चले जाते हैं और मंदिरों के कपाट भी बंद कर दिए जाते हैं। कहते हैं कि इस वजह से परियों (स्थानीय बोली में सावनी) की नकारात्मक शक्तियां बढ़ जाती है और ऐसे में इलाके को उनके प्रकोप से बचाने के लिए और शक्तियों को नियंत्रित करने के लिए यह त्यौहार मनाया जाता है।

इस मेले के लिए लोग अपने रिश्तेदारों को भी बुलाते हैं। मेले के दौरान गांव के प्रत्येक घर में दु (बाड़ी), ओगला और फाफरे जैसे के पारंपरिक व्यंजन बनाए और परोसे जाते है। इसके अलावा नमकीन चाय बनाई जाती है। इस बीच किन्नौरी नाटी यानी कायंग का दौर चलता है।

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