रैत, नितिश पठानियां
द्रोणाचार्य शिक्षण स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रैत में अंतराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि शिखा कौंडल ने शिरकत की। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन कर की गई।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ बीएस बाघ ने मुख्यातिथि तथा उपस्थित महिलाओं का स्वागत किया तथा महिला दिवस की बधाई दी। साथ ही महाविद्यालय के बच्चों के द्वारा भाषण प्रतियोगिता व स्लोगन लेखन प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया। भाषण प्रतियोगिता में अंकिता ने पहला,स्वाति चौहान ने दूसरा,मोनिका ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। साथ ही स्लोगन लेखन प्रतियोगिता में गिरियक्ष ने पहला, नीलम ने दूसरा, तमन्ना ने तीसरा स्थान प्राप्त किया।
*कैसे हुई इस दिन की शुरुआत*
कार्यक्रम की संयोजिका भारती चौधरी ने अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि रही कि वहां के सम्राट निकोलस को पद छोड़ना पड़ा, और अंतरिम सरकार ने महिलाओं को मतदान का अधिकार दे दिया। महिलाओं के इस आंदोलन को सफलता मिली, और एक साल बाद ही सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने इस दिन को राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित कर दिया, जिसके बाद से इस दिन को मनाने की शुरुआत हुई। उस समय रूस में जूलियन कैलेंडर का प्रयोग होता था, जिस दिन महिलाओं ने यह हड़ताल शुरू की थी, वह तारीख 23 फरवरी थी।
*अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को ही क्यों चुना गया?*
साल 1917 में पहले विश्व युद्ध के दौरान 28 फरवरी को रूस की महिलाओं ने ब्रेड एंड पीस’ (यानी खाना और शांति) की मांग की थी। यही नहीं, हड़ताल के दौरान उन्होंने अपने पतियों की मांग का समर्थन करने से भी मना कर दिया था, और उन्हें युद्ध को छोड़ने के लिए राजी भी कराया था।
ग्रेगेरियन कैलेंडर में यह दिन 8 मार्च था और उसी के बाद से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाने लगा। कई देशों में इस दिन महिलाओं के सम्मान में छु्ट्टी दी जाती है और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दिन महिला और पुरुष एक-दूसरे को फूल देते हैं।
*मुख्यातिथि शिखा कौंडल के बोल*
मुख्यातिथि ने बताया कि महिलाओं को अपने अंदर की महिला को पहचानना जरूरी है घर सिर्फ दीवारों और साज़-सामान से नहीं बनता, बल्कि घर औरत से मुकम्मल होता है। महिलाएं घर परिवार का अहम हिस्सा होती है। लड़की मां-बाप के घर में बेटी बनकर पैदा लेती है तो घर की रौनक बनती हैं। पति के घर जाती है तो उसकी जिंदगी और उसके घर को रौशन करती है। जिस घर में औरत का वास नहीं वो घर बेहद सूना और खालीपन से भरा होता है। हर लड़की मां, बहन और बेटी के रूप में पहले अपने बाप के घर की रौनक बनती है फिर अपने पति के घर की रौनक बनती है। महिलाएं समाज और घर का अहम हिस्सा है इसलिए उनका सम्मान भी जरूरी है।
*महाविद्यालय के कार्यकारिणी निदेशक के बोल*
महाविद्यालय के कार्यकारिणी निदेशक बीएस पठानिया ने बताया कि एक महिला जो माता के रूप में अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देती है परिवार को सम्भालती है।और आज के समय में महिलाएं पुरूषों के कम नहीं परन्तु फिर भी सामाजिक संकीर्णता को दूर करने की आवश्यकता है।
*ये रहे मौजूद*
इस मौके पर प्रबंधक निदेशक जीएस पठानिया, कार्यकारिणी निदेशक बीएस पठानिया, प्राचार्य बीएस बाघ,शैक्षणिक अधिष्ठाता डॉ प्रवीण शर्मा, विभागाध्यक्ष सुमित शर्मा,डॉ पूनम डोगरा, कृतिका कटोच ,अनीता चंदेल, दीपिका सहित समस्त प्रवक्ता वर्ग मौजूद रहे।