हिमाचल: पिता सामान्य, मां जनजातीय है तो भी बेटे को एसटी का मिलेगा लाभ, जानें विस्तार से कोर्ट ने क्या कहा

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शिमला – नितिश पठानियां

भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 (25) के अनुसार अनुसूचित जनजाति की ऐसी कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं है कि आदिवासी महिलाओं के बच्चे को आदिवासी नहीं माना जा सकता। यह टिप्पणी रामपुर स्थित विशेष न्यायाधीश किन्नौर की अदालत ने फर्जी एसटी प्रमाण पत्र पर पदोन्नति लेने के एक मामले में की।

अदालत ने मामले के आरोपी शिक्षक की ओर से पदोन्नति के लिए दिए गए एसटी प्रमाण पत्र को असली बताया है। शिक्षक का यह प्रमाण पत्र बचपन में आठ साल की उम्र में मां के साथ रहते हुए किन्नौर में बनाया गया था। शिकायत में इस प्रमाण पत्र को फर्जी बताया गया था।

अदालत ने फैसला दिया कि शिक्षक जब आठ साल के थे तब उन्हें अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र दिया। तत्कालीन तहसीलदार ने अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि उन्होंने इसे संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश 1950 और अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति सूची (संशोधन) 1965 और हिमाचल प्रदेश अधिनियम 1970 के तहत जारी किया है।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 (25) के तहत अनुसूचित जनजाति की परिभाषा के अनुसार ऐसी कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं है कि आदिवासी महिलाओं के बच्चे को आदिवासी नहीं माना जा सकता। अभियोजन पक्ष ने ऐसा कोई ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है।

अदालत ने रमेश भाई नाकिया बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य शीर्षक से मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए यह भी टिप्पणी की है कि आदिवासी और गैर आदिवासी के बीच हुए विवाह, पैदा हुआ बच्चा यह साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र है कि उसका पालन-पोषण उसकी मां ने किया था जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से संबंधित थी।

यह है मामला

मामले की शिकायत मार्च 2017 में दी गई। रामपुर उपमंडल में सेवाएं दे रहे शिक्षक पर आरोप लगाया गया उन्होंने 2008 को किन्नौर से महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाकर जनजातीय प्रमाण पत्र प्राप्त किया था। आरोपी के पिता शिमला जिले के स्थायी निवासी हैं। पिता ने किन्नौर की आदिवासी महिला के साथ विवाह किया।

कानून के अनुसार जब एक आदिवासी पत्नी और गैर आदिवासी पति के बीच विवाह होता है तो उनसे पैदा हुआ बच्चा अपने पिता की जाति और स्थिति का पालन करता है। आरोपी के सेवा रिकॉर्ड में भी स्थायी पता शिमला जिले का है।

शिक्षक ने शुरुआत में सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार के रूप में जूनियर बेसिक टीचर की नौकरी प्राप्त की, लेकिन जेबीटी से पीजीटी तक पदोन्नति के लिए फर्जी जनजातीय प्रमाण पत्र का इस्तेमाल किया और आर्थिक लाभ प्राप्त किए। शिकायत के बाद एंटी करप्शन ब्यूरो शिमला की ओर की गई प्रारंभिक जांच में आरोपी का अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र गलत तरीके से तैयार करना पाया गया। मामला अदालत में पेश किया गया।

शिक्षक ने कहा कि उनकी मां का जन्म अनुसूचित जनजाति में हुआ। उसका जन्म भी किन्नौर में हुआ। मां ने पालन पोषण भी आदिवासी रीति-रिवाजों से किया। पांचवीं तक की शिक्षा भी किन्नौर में प्राप्त की। परिवार के पास किन्नौर में जमीन जायदाद है।

उसने कभी भी अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन नहीं किया। यह प्रमाण पत्र 1981 को जारी किया गया था। उन्होंने जांच अधिकारी के पास स्पष्ट रूप से कहा है कि प्रमाण पत्र असली है। उन्होंने यह प्रमाण पत्र हलका पटवारी और प्रधान की रिपोर्ट के आधार पर जारी किया।

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