हिमाचल निर्माता को ‘भारत रत्न’ देने की मांग, विधानसभा में प्रस्ताव पारित करने की अपील

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शिमला – नितिश पठानियां 

हिमाचल प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करने की मांग उठी है। डॉ. यशवंत सिंह परमार स्मृति समारोह आयोजन समिति ने इस संबंध में हिमाचल प्रदेश विधानसभा से एक प्रस्ताव पारित कर भारत सरकार को भेजने की अपील की है।

समिति द्वारा जारी पत्रों के अनुसार, डॉ. यशवंत सिंह परमार ने 40 वर्षों से भी अधिक समय तक हिमाचल प्रदेश की सेवा की और उनके योगदान को चिरस्मरणीय बनाने के लिए उन्हें ‘भारत रत्न’ से नवाजा जाना चाहिए।

समिति के सदस्यों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि डॉ. परमार का हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में एक ‘चेयर’ (पीठ) की स्थापना की गई है, और उनके सम्मान में सोलन में वर्ष 2015 में एक ‘मूर्ति’ भी स्थापित की गई है।

समिति ने प्रदेश के मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, और नेता प्रतिपक्ष से आग्रह किया है कि वे इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव को विधानसभा में पारित कराकर भारत सरकार को भेजें, ताकि डॉ. परमार के अतुलनीय योगदान को उचित सम्मान मिल सके।

डॉ. यशवंत सिंह परमार (4 अगस्त 1906 – 02 मई 1981) का जीवन हिमाचल प्रदेश के निर्माण और विकास को समर्पित रहा। वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय थे।

लगभग 3 दशक तक कुशल प्रशासक के रूप में उन्होंने जन-जन की आकांक्षाओं को समझते हुए प्रदेश को विकास की नई दिशा दी। उनका जीवन गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता के लिए समर्पित था।

डॉ. परमार का जन्म 4 अगस्त 1906 को सिरमौर जिले के चनालग गांव में हुआ था। उन्होंने 1928 में बीएससी. और 1930-31 में बी एओ. की डिग्री प्राप्त की। 1944 में उन्होंने एल.एल.बी. की उपाधि प्राप्त की।

उन्होंने सिरमौर रियासत में 11 वर्षों तक सब जज और मजिस्ट्रेट (1930-37) के बाद जिला और सत्र न्यायाधीश (1937-41) के रूप में अपनी सेवाएं दीं।

न्यायाधीश के रूप में सेवा के दौरान भी वे सिरमौर की जनता के हितों के लिए संघर्षरत रहे। उन्होंने ब्रिटिश रियासत के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई और प्रजामंडल से जुड़े रहे।

1943 में वे सिरमौर एसोसिएशन के सचिव बने। 1946-47 तक हिमाचल हिल स्टेट काउंसिल के प्रधान और 1947-48 तक ऑल इंडिया राजपूत कांफ्रेंस के प्रधान रहे।

15 अप्रैल 1948 को 30 रियासतों के विलय के बाद हिमाचल प्रदेश बना और 25 जनवरी 1971 को इसे पूर्ण राज्य का दर्जा मिला, जिसमें डॉ. परमार का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

राजनीतिक जीवन

डॉ. परमार संविधान सभा के सदस्य थे और भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने में उनका योगदान रहा। 1952 से 56 तक हिमाचल प्रदेश चौक एंड बाजागी कमीशन, 1948 से 64 तक हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे। दिसंबर 1956 से 24 जनवरी 1977 तक वे हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।

उनके कार्यकाल में पहाड़ी क्षेत्रों के विकास के लिए “हिमाचल पॉलीएंड्री इन द हिमालयाज़”, “हिमाचल प्रदेश केस फॉर स्टेटहुड”, और “हिमाचल प्रदेश एरिया एंड लैंग्वेजेस” जैसी महत्वपूर्ण पुस्तकें प्रकाशित हुईं।

यह पहला अवसर है कि हिमाचल प्रदेश के इस महान सपूत को ‘भारत रत्न’ दिलाने के लिए इस तरह से संगठित प्रयास किए जा रहे हैं। यह देखना होगा कि विधानसभा इस महत्वपूर्ण मांग पर क्या कदम उठाती है।

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