स्वतंत्रता सेनानी का अपमान! 3 साल से स्टोर में कैद है कर्नल मेहर दास की प्रतिमा

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देहरा – शिव गुलेरिया

आजाद हिंद फौज के वीर सिपाही जिनकी बदौलत हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया था। आज उस स्वतंत्रता सेनानी कर्नल मेहर दास की प्रतिमा 3 वर्षों से पंचायत घर के स्टोर में बंद पड़ी है।

बता दे कि नैहरणपुखर में एनएच-503 चौड़ीकरण के दौरान इसे हटाया गया था लेकिन विभाग द्वारा आज तक इसे दोबारा स्थापित नहीं किया गया है। यह न सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी का अपमान है बल्कि इतिहास के उन वीर नायकों की उपेक्षा भी है जिनकी कुर्बानी की बदौलत हम आजाद भारत में जी रहे हैं।

जानिए कौन हैं कर्नल मेहर दास

आपको बता दें कि 9 फरवरी, 1921 को नैहरणपुखर गांव में जन्मे कर्नल मेहर दास के पिता मोहन लाल ब्रिटिश सेना में जमादार पद पर कार्यरत थे। कर्नल मेहर दास ने देहरा और जालंधर के किंग्स जॉर्ज स्कूल से अपनी शिक्षा पूरी की। इसके बाद उन्होंने सेना में आवेदन किया और गनर्स रैजीमैंट में चुने गए थे।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब ब्रिटिश सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा था तो कर्नल मेहर दास भी जापानी सेना द्वारा बंदी बना लिए गए। उन्हें जर्नल कुजियारा की कमान वाली जेल में रखा गया था। वहां उन्हें अथक यातनाएं दी गईं, लेकिन वह हिम्मत नहीं हारे और इसी जेल में उनकी मुलाकात नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुई। नेताजी  के आग्रह पर वह आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए। उनके सामने ही नेता जी ने अपना प्रसिद्ध नारा “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” दिया था।

कर्नल मेहर दास ने 4 फरवरी, 1944 को अंग्रेजों के खिलाफ पहली गोली चलाई थी जिसे आजाद हिंद फौज की पहली बड़ी कार्रवाई माना जाता है। उनकी बहादुरी और नेतृत्व क्षमता को देखते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें “सरदार-ए-जंग” की उपाधि दी। वह अंग्रेजों के खिलाफ सबसे पहले युद्ध करने वाले योद्धाओं में शामिल थे।

प्रधान बोले-ऐसा अन्याय न करें

ग्राम पंचायत बडहूं के प्रधान दिलजीत सिंह ने कहा कि एनएच-503 के तत्कालीन एसडीओ ने 3 साल पहले यह प्रतिमा पंचायत के सुपुर्द की थी लेकिन इसे अब तक दोबारा स्थापित नहीं किया गया।

पूर्व प्रधान और समाजसेवी जीवन शर्मा के बोल

पूर्व प्रधान और समाजसेवी जीवन शर्मा ने कहा कि 3 साल पहले सड़क चौड़ीकरण के नाम पर इसे हटा दिया गया था लेकिन आज तक इसे स्थापित नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि यदि सरकार स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान नहीं कर सकती तो यह देश के इतिहास के साथ अन्याय होगा।

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