हिमखबर डेस्क
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव के दौरान एक अधिकारी को देवी-देवताओं के पारंपरिक नियमों का पालन न करना महंगा पड़ गया। एक तहसीलदार को बिना जूते उतारे एक देवता के अस्थायी शिविर में प्रवेश करने पर देवता और उनके अनुयायियों के गुस्से का सामना करना पड़ा।
दरअसल, बुधवार को जब अधिकतर देवी-देवता ढालपुर मैदान स्थित अपने अस्थायी शिविरों में पहुंच गए थे, तभी एक तहसीलदार देवता भृगु ऋषि के शिविर में पहुंचे। देवलुओं (देवता के अनुयायियों) के अनुसार, अधिकारी ने पारंपरिक नियमों का पालन नहीं किया और जूते पहनकर ही शिविर में प्रवेश कर गए।
इस पर देवता भृगु ऋषि ने “गूर” (वह व्यक्ति जिसके माध्यम से देवता अपनी इच्छा व्यक्त करते हैं) के माध्यम से अपनी नाराजगी जाहिर की, जिससे देवलुओं का गुस्सा भी भड़क उठा। इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। वीडियो में दिख रहा है कि गुस्साई भीड़ तहसीलदार को मेला कमेटी कार्यालय से देवता के अस्थायी शिविर तक ले जा रही है।
मौके पर मौजूद नीणू के देवता नारद मुनि और आशणी के देवता भृगु ऋषि के समक्ष तहसीलदार को माफी मांगनी पड़ी, जिसके बाद ही माहौल शांत हुआ। इस घटना ने प्रशासन और स्थानीय संस्कृति के बीच की संवेदनशीलता को एक बार फिर से उजागर किया है।
कुल्लू घाटी में देवी-देवताओं के अपने सख्त नियम हैं, जिनका पालन सभी को करना पड़ता है। जिसमें अधिकारियों और आगंतुकों को भी शामिल किया जाता है। इन नियमों के अनुसार, देवता के शिविरों में नंगे सिर, जूते-चप्पल, चमड़े का सामान और नशीली वस्तुएं ले जाना सख्त मना है। इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि पारंपरिक आस्था और नियमों का उल्लंघन स्वीकार्य नहीं है।