हिमखबर डेस्क
हिमाचल की शांत हवा में, सतौन की धूल भरी सड़क पर एक अकेली परछाई भटक रही थी। शरीर थका हुआ था, कपड़े मैले थे, आंखों में एक खालीपन था जो किसी अनसुलझे दर्द की कहानी कह रहा था। वह एक बुजुर्ग व्यक्ति था, जो मानसिक रूप से परेशान था और अपना नाम या घर का पता बताने में भी असमर्थ था।
वहां से गुज़रते थे पत्रकार और समाज सेवक संजय कंवर, जिनकी आंख केवल ख़बरें नहीं ढूंढ़ती, बल्कि हर कोने में मानवता का दर्द पहचानती हैं। संजय ने उस बुजुर्ग को देखा और उनके हृदय में हमेशा की तरह एक टीस उठी, इन्हें घर मिलना चाहिए।
संजय ने बिना देर किए उस बेसहारा आत्मा को रेस्क्यू किया। स्थानीय एसडीएम से ज़रूरी अनुमति ली गई, और फिर 4 सितंबर 2025 को, संजय की पहल पर, उस बुजुर्ग को अपनी गाड़ी से उत्तराखंड के रुड़की स्थित “अपना घर” आश्रम पहुंचाया गया।
रुड़की के शांत और स्नेही माहौल में, बुजुर्ग का उपचार शुरू हुआ। समय बीता, और अपना घर आश्रम के प्यार भरे माहौल और सही देखभाल ने चमत्कार दिखाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे, टूटी हुई यादों के धागे जुड़ गए। बातचीत करने पर, उस व्यक्ति ने धीरे से अपना नाम “रमेश” बताया। और फिर पता: गांव जटपुरा, करनाल, हरियाणा।
“अपना घर” आश्रम रुड़की के प्रभारी सन्नी चौधरी ने अथक प्रयास किए और आखिरकार, रमेश के परिवार का पता लगा लिया। फोन की घंटी बजी और जब सन्नी चौधरी जी ने बताया कि उनका सालों से लापता अपना आदमी मिल गया है, तो हरियाणा के उस घर में जैसे मानो बरसों बाद खुशी की रोशनी लौटी।
दहशरा के पर्व से एक दिन पहले आज, वह दिन था। रमेश की छोटी बहन नीतू और उनके भांजे विनोद रुड़की के “अपना घर” आश्रम पहुंचे। दरवाज़े से अंदर आते ही नीतू की आंखे अपने भाई को ढूंढ़ने लगीं। और फिर, सामने… रमेश! उन्हें देखते ही नीतू के दिल से एक चीख निकली, जो शब्दों में नहीं, बल्कि सीधे आंखो से बह निकले आंसुओं में व्यक्त हुई।
साल भर से दिल में दबा ग़म, हताशा और इंतज़ार, आज आंखो से झर-झर बह गया। भाई-बहन एक-दूसरे से लिपट गए। रमेश की आंखो में भी एक चमक थी, जो बता रही थी कि उन्हें भी अपना खोया हुआ संसार वापस मिल गया है। नीतू ने भरे गले से बताया कि रमेश कितने समय से लापता थे और परिवार ने उन्हें ढूंढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन कोई पता नहीं चला। उन्होंने कहा, “जब फ़ोन आया और भाई के मिलने की ख़बर मिली, तो लगा जैसे ईश्वर ने खुद हमें यह तोहफा दिया है।”
बहरहाल, यह सब संभव हुआ पांवटा साहिब के पत्रकार और समाज सेवक संजय कंवर की वजह से। संजय कंवर हमेशा ही ऐसे असहाय और अपनों से बिछड़े लोगों को परिवारों से मिलवाने का यह मानवीय सिलसिला लगातार जारी रखे हुए हैं। नीतू और उनके परिवार ने संजय कंवर और अपना घर आश्रम का हाथ जोड़कर आभार व्यक्त किया, क्योंकि उनकी यह पहल एक भाई को उसकी बहन से मिला पाई और एक सूने घर में फिर से खुशियां ला पाई।